लेकतंत्र को राजतंत्र में तब्दील करने का स्वपन भंग हुआ। सारी संवैधानिक
शक्तियों का दुरुपयोग करने के बाद भी अपने पुत्र का औपचारिक राज्याभिषेक
करने में कांग्रेस की महारानी असफल रही। अब निश्चित रुप से पांच वर्ष
इंतज़ार करना होगा, क्योंकि अब किसी चमत्कार के होने की आशा नहीं बची है।
महारानी को इस बात का अहंकार था कि कोई पार्टी अपने बल पर सरकार नहीं बना
पायेगी और थक हार कर सत्ता की चाबी उनके पास ही आयेगी। विधानसभाओं के चुनाव
जीतने के मतदाताओं को लुभाने के लिए खैरात योजनाएं ले आयी, पर कामयाबी
नहीं मिली। मोदी का रथ रोकने के लिए शिखंड़ी केजरीवाल को आगे किया।
मुसलमानों को मोदी से भयभीत करने के लिए सेक्युलिरिजम के नाम पर मुस्लिम
कार्ड़ खेला, पर पास उलटा पड़ गया। इन नादानियों से कांग्रेस का सफाया हो
गया।
मोदी के विरुद्ध जी भर कर जहर उगलने, उन्हें तरह -तरह के अशोभनयी और अभ्रद अलंकारों से अलंकृत करने के लिए उकसाने वाली महारानी भारतीय जनता को समझ नहीं पायी। उसका यह भ्रम टूट गया कि भारतीय मूर्ख और अज्ञानी होते हैं, उन्हें आसानी से अपने वश में किया जा सकता है। लोकसभा चुनावों में पराजय भी इतनी जबरदस्त मिली कि सारे के सारे चापुलस दरबारी चुनाव हार गये। थोड़े बहुत शूरमा ही अपनी इज्जत बचा पायें। मां तो चुनाव जीत गयी, पर पु़त्र को लोहे के चने चबाने पड़े। परन्तु मुस्लिम बहुल उत्तर प्रदेश को जीतने की सारी तिकडम निष्फल हो गयी। शिखंड़ी भी उतरा मुहं ले कर दिल्ली कूच कर गया है।
कांग्रेस की शह पर दिल्ली की जिम्मेदारी से भागे भगोड़ो की वाराणसी जीतने की ख्वाहिश पूरी नहीं हो पायी, अलबता टोपी पहन की कई बार नमाज पढ़ी, मोदी को हराने के लिए विदेशों से भारी भरकम चंदा ले आया, पर वोटों का जुगाड़ नहीं कर पाया। अब जनाब को खोयी इज्जत बचाने और दिल्ली विधानसभा में पार्टी के विधायाकों को सम्भालना मुश्किल हो रहा है। कांग्रेसी नेताओं को केजरीवाल दुखान्तिका से यह सबक लेना चाहिये कि युद्ध सार्थक रणनीति और अपनी क्षमता को बढ़ाने से जीता जाता है, शिखंडियों को आगे कर के नहीं जीता जाता।
दो दिन पहले अच्छे दिन आने वाले हैं, नारे को व्यंगात्मक शैली में लेने वाले प्रमुख दरबारी जो आजकल चरित्रहीनता के सिरमौर बन कर कांग्रेस की नाक कटवा रहे हैं, कह रहे थे- अच्छे दिन तो निर्मल बाबा भी लाते हैं। दो दिन बाद देख लेना किस के अच्छे दिन आने वाले हैं। अब ये व्यभिचारी नेता, जो बिना शादी रचाये एक ब्याहता स्त्री, जिसका तलाक नहीं हुआ है, पता नहीं इस समय किस कन्द्रा में जा कर अय्यासी कर रहे हैं ? पूरा देश इनकी जबान से दो कडवे शब्द सुनने की प्रतीक्षा कर रहा है। दरअसल वो मीडिया, जो मोदी को ले कर बात का बतंगड़ बनाता था, इन महाशय का जलवा ही नहीं दिखा रहा है। टीवी के कई समाचार चेनल, जो शिखंडी केजरीवाल, दराबारी कांग्रेसियों के पेरोकार थे, वक्त बदलने पर अपने आप इनसे दूरियां बना कर अपनी खैर मना रहे हैं।
दुर्भाग्य से महात्मा गांधी और पटेल की कांग्रेस को व्यभिचारी प्रवक्ता ही मिलें। मनु सींघवी भी व्यभिचार के आरोप से बरी नहीं हो पायें अब दिग्विजय सिंह बेशर्मी से व्यभिचार को निजी मामला बता रहे हैं। कांग्रेस की आज हालत हुई है, उसका कारण भी बिना पैंदें के ऐसे नेता ही है, जो बराबर अर्नगल बोल कर पार्टी की इमेज बिगाड़ रहे हैं। पार्टी को मरणासन्न अवस्था में पहुंचाने का पूरा श्रेय पार्टी राजमाता, उनके पुत्र और दरबारियों की जमात को जाता है। कांग्रेस पार्टी को यदि पुनः जीवनदान देना है, तो जमीन से जुड़े राजनेताओं को राजवंशीय परम्परा के विरुद्ध विद्रोह करना होगा। भाजपा 2009 में पाये 18 प्रतिशत वोटों को 48 प्रतिशत तक पहुंचा सकती है, तो कांग्रेस भी पांच सालों में अपनी स्थिति सुधार सकती है।
परन्तु यदि अब भी कांग्रेसी नेता एक परिवार की पूंछ पकड़ कर नैया पार करना चाहते हैं, तो अब नये भारत में यह सम्भव नहीं होगा। क्योंकि अब भारतीय जनता एक परिवार की दासता को अस्वीकृत कर चुकी है। कांग्रेसी नेताओं को भी साहस कर हार की जिम्मेदारी का ठीकरा मां-पुत्र पर फोड़ना पडे़ेगा। जो हकीकत है, उसे स्वीकार करना होगा। कांग्रेस की जो गत इसी परिवार की कृपा से बनी है। अब राजवंशीय परम्परा से चुनाव जीतना सम्भव नहीं होगा। अब चुनाव सेक्युलिरिजम का राग गाने से भी नहीं जीते जा सकेंगे। जातीय समीकरण बिठाने और मुस्लिम वोटों के भरोसे भी चुनाव जीतना सम्भव नहीं होगा। चनाव जीतने के लिए जनता का दिल जीतना होगा। जनता के मन में अपने कार्य और क्षमता के प्रति विश्वास बिठाना होगा।
कांग्रेसी नेता अब भी यदि एक परिवार की परिक्रमा करने के बजाय अपने-अपने क्षेत्र में जा कर बिना सांसद और विधायक बने ही जनता के दुख-दर्द में भागिदारी निभायेंगे और उनकी आवाज उठायेंगे, तो वे मरणासन्न अवस्था में पहुंची कांग्रेस को जीवन दान दे सकते हैं। किन्तु एक परिवार की स्तुति गान करने में ही लगे रहे, तो कांग्रेस मुक्त भारत के नारे को सार्थक बना देंगे। तीन बार मर कर वापस जीवित हुई पार्टी की हमेशा के लिए मौत हो जायेगी। वे सारे कांग्रेसी अनाथ हो जायेंगे, जिनकी अब भी अपनी पार्टी के प्रति आस्था जुड़ी हुई है।
मोदी के विरुद्ध जी भर कर जहर उगलने, उन्हें तरह -तरह के अशोभनयी और अभ्रद अलंकारों से अलंकृत करने के लिए उकसाने वाली महारानी भारतीय जनता को समझ नहीं पायी। उसका यह भ्रम टूट गया कि भारतीय मूर्ख और अज्ञानी होते हैं, उन्हें आसानी से अपने वश में किया जा सकता है। लोकसभा चुनावों में पराजय भी इतनी जबरदस्त मिली कि सारे के सारे चापुलस दरबारी चुनाव हार गये। थोड़े बहुत शूरमा ही अपनी इज्जत बचा पायें। मां तो चुनाव जीत गयी, पर पु़त्र को लोहे के चने चबाने पड़े। परन्तु मुस्लिम बहुल उत्तर प्रदेश को जीतने की सारी तिकडम निष्फल हो गयी। शिखंड़ी भी उतरा मुहं ले कर दिल्ली कूच कर गया है।
कांग्रेस की शह पर दिल्ली की जिम्मेदारी से भागे भगोड़ो की वाराणसी जीतने की ख्वाहिश पूरी नहीं हो पायी, अलबता टोपी पहन की कई बार नमाज पढ़ी, मोदी को हराने के लिए विदेशों से भारी भरकम चंदा ले आया, पर वोटों का जुगाड़ नहीं कर पाया। अब जनाब को खोयी इज्जत बचाने और दिल्ली विधानसभा में पार्टी के विधायाकों को सम्भालना मुश्किल हो रहा है। कांग्रेसी नेताओं को केजरीवाल दुखान्तिका से यह सबक लेना चाहिये कि युद्ध सार्थक रणनीति और अपनी क्षमता को बढ़ाने से जीता जाता है, शिखंडियों को आगे कर के नहीं जीता जाता।
दो दिन पहले अच्छे दिन आने वाले हैं, नारे को व्यंगात्मक शैली में लेने वाले प्रमुख दरबारी जो आजकल चरित्रहीनता के सिरमौर बन कर कांग्रेस की नाक कटवा रहे हैं, कह रहे थे- अच्छे दिन तो निर्मल बाबा भी लाते हैं। दो दिन बाद देख लेना किस के अच्छे दिन आने वाले हैं। अब ये व्यभिचारी नेता, जो बिना शादी रचाये एक ब्याहता स्त्री, जिसका तलाक नहीं हुआ है, पता नहीं इस समय किस कन्द्रा में जा कर अय्यासी कर रहे हैं ? पूरा देश इनकी जबान से दो कडवे शब्द सुनने की प्रतीक्षा कर रहा है। दरअसल वो मीडिया, जो मोदी को ले कर बात का बतंगड़ बनाता था, इन महाशय का जलवा ही नहीं दिखा रहा है। टीवी के कई समाचार चेनल, जो शिखंडी केजरीवाल, दराबारी कांग्रेसियों के पेरोकार थे, वक्त बदलने पर अपने आप इनसे दूरियां बना कर अपनी खैर मना रहे हैं।
दुर्भाग्य से महात्मा गांधी और पटेल की कांग्रेस को व्यभिचारी प्रवक्ता ही मिलें। मनु सींघवी भी व्यभिचार के आरोप से बरी नहीं हो पायें अब दिग्विजय सिंह बेशर्मी से व्यभिचार को निजी मामला बता रहे हैं। कांग्रेस की आज हालत हुई है, उसका कारण भी बिना पैंदें के ऐसे नेता ही है, जो बराबर अर्नगल बोल कर पार्टी की इमेज बिगाड़ रहे हैं। पार्टी को मरणासन्न अवस्था में पहुंचाने का पूरा श्रेय पार्टी राजमाता, उनके पुत्र और दरबारियों की जमात को जाता है। कांग्रेस पार्टी को यदि पुनः जीवनदान देना है, तो जमीन से जुड़े राजनेताओं को राजवंशीय परम्परा के विरुद्ध विद्रोह करना होगा। भाजपा 2009 में पाये 18 प्रतिशत वोटों को 48 प्रतिशत तक पहुंचा सकती है, तो कांग्रेस भी पांच सालों में अपनी स्थिति सुधार सकती है।
परन्तु यदि अब भी कांग्रेसी नेता एक परिवार की पूंछ पकड़ कर नैया पार करना चाहते हैं, तो अब नये भारत में यह सम्भव नहीं होगा। क्योंकि अब भारतीय जनता एक परिवार की दासता को अस्वीकृत कर चुकी है। कांग्रेसी नेताओं को भी साहस कर हार की जिम्मेदारी का ठीकरा मां-पुत्र पर फोड़ना पडे़ेगा। जो हकीकत है, उसे स्वीकार करना होगा। कांग्रेस की जो गत इसी परिवार की कृपा से बनी है। अब राजवंशीय परम्परा से चुनाव जीतना सम्भव नहीं होगा। अब चुनाव सेक्युलिरिजम का राग गाने से भी नहीं जीते जा सकेंगे। जातीय समीकरण बिठाने और मुस्लिम वोटों के भरोसे भी चुनाव जीतना सम्भव नहीं होगा। चनाव जीतने के लिए जनता का दिल जीतना होगा। जनता के मन में अपने कार्य और क्षमता के प्रति विश्वास बिठाना होगा।
कांग्रेसी नेता अब भी यदि एक परिवार की परिक्रमा करने के बजाय अपने-अपने क्षेत्र में जा कर बिना सांसद और विधायक बने ही जनता के दुख-दर्द में भागिदारी निभायेंगे और उनकी आवाज उठायेंगे, तो वे मरणासन्न अवस्था में पहुंची कांग्रेस को जीवन दान दे सकते हैं। किन्तु एक परिवार की स्तुति गान करने में ही लगे रहे, तो कांग्रेस मुक्त भारत के नारे को सार्थक बना देंगे। तीन बार मर कर वापस जीवित हुई पार्टी की हमेशा के लिए मौत हो जायेगी। वे सारे कांग्रेसी अनाथ हो जायेंगे, जिनकी अब भी अपनी पार्टी के प्रति आस्था जुड़ी हुई है।
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