Tuesday, 20 May 2014

129 साल पुरानी कांग्रेस की मृत्यु हो गयी है- अधिकृत घोषणा सुनने का इंतजार है

129 साल पुरानी कांग्रेस की मृत्यु हो गयी है। बंदरिया के मरे हुए बच्चे की तरह कांग्रेसी अपनी पार्टी को छाती से चिपकाये रो रहे हैं। उसकी विधिवत अन्तयेश्टि भी नहीं करने दे रहे हैं। वे इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है कि जो पार्टी कांग्रेस होने का दावा कर रही है, वह दरअसल एक मां और उनके पुत्र की पार्टी है, जिसके पास अपने दरबारियों का हुजूम हैं। इस पार्टी का नामकरण मदर एण्ड सन पार्टी कर दिया जाना चाहिये, पर जानबूझ कर किया नहीं जा रहा है। सामंती विचारधारा वाली पार्टी को कांग्रेसी विचारधारा से कोई मतलब नहीं है। पार्टी में न तो लोकतंत्र है और न ही इस पार्टी के मुखिया को लोकतंत्र में कोई आस्था है। दस वर्ष तक एक परिवार ने सारी शक्तियों को केन्द्रीत कर लोकतंत्र को भारी आघात पहुंचाया है। विडम्बना यह है कि देश को जिस हालत में आज पहुंचाया है, उसकी पूरी जिम्मेदारी इस परिवार की ही है। किन्तु न तो इस बात को यह परिवार स्वीकार करता है और न ही अपनी करतूतों के कारण लोकसभा में पार्टी की भारी पराजय के लिए अपने आपको जिम्मेदार मानता है।
19 मई 2014 को सायं चार बजे हुई कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक के बाद कांग्रेस की मृत्यु की पुष्टि हो गयी, किन्तु इसकी घोषणा से परहेज किया जा रहा है। मीटिंग समाप्त होने पर बाहर निकले सभी दरबारियो के मायूस चेहरे लटके हुए थे । उनके होंठ सिये हुए थे। ऐसा लग रहा था, जैसे ये सभी किसी का दाहसंस्कार करने के बाद लौट कर आ रहे हों। किन्तु आश्चर्य इस बात का है कि उन्हें कांग्रेस की मृत्यु का कोई शाोक नहीं है। उन्हें इस बात का मलाल है कि उनके राजघराने के हाथों से सत्ता चली गयी। शक्तिहीन पार्टी महारानी और राजकुमार के आश्रितों के लिए यह बहुत बड़ा सदमा था, क्योंकि वे इस राज परिवार के आश्रय के बिना राजनीति कर ही नहीं सकते। इन चाटुकारों के लिए परिवार की परिक्रमा से ही राजनीति का सफर प्रारम्भ होता है और यहीं आ कर समाप्त होता है।
किन्तु देश भर में फैले कांग्रेसी कार्यकर्ता और मतदाता अपनी प्रिय पार्टी की मृत्यु से शोक संतप्त हैं। उनके मन में गहरा विक्षाभ हें। उन्हें आशा थी कि लोकसभा में भारी पराजय के बाद मरणाशन्न कांग्रेस को जीवनदान देने का अंतिम प्रयास किया जायेगा। एक परिवार, जो पार्टी की इस दुर्दशा का जिम्मेदार है, उससे पार्टी को मुक्त किया जायेगा। मां-बेटे से पराजय के संबंध में तीखे सवाल पूछे जायेंगे। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। दरबारियों ने एक सोची समझी रणनीति के तहत मां-बेटे को उनके पाप से मुक्त कर दिया और सारा पाप पूरी पार्टी पर डाल दिया, जब कि दुनियां देख रही है कि कांग्रेस की जो दुर्दशा हुई है, उसकी शतप्रतिशत जिम्मेदारी मां-पुत्र की जोडी ही हैं ।
कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं और जमीन से जुड़े नेताओं के समक्ष धर्मसंकट आ गया है कि वे अब क्या करें ? वे न तो उन दरबारियों को बदल सकते हैं न ही उनसे सवाल कर सकते हैं, क्योंकि दरबारियों को राजपरिवार ने ही वर्षों पहले कांग्रेस वर्किंग कमेटी में चुन कर बिठाया है और उसमें वे कोई तब्दीली नहीं कर रहे हैं। ये सारे दरबारी राजपपरिवार से पूरी तरह जुड़े हुए हैं किन्तु आम कांग्रेस जन से कटे हुए हैं। उन्हें मालूम है, कांग्रेस का नेतृत्व नहीं बदला गया तो अगले चुनावों में 44 का आंकड़ा शून्य तक पहुंच सकता है। हां यदि अपने अपने राज्यों का कोई प्रभावी नेता नेतृत्व के प्रति आंध्रा की तर्ज पर विद्रोह कर दें, तो कई प्रान्तीय कांग्रेस का जन्म हो सकता है। प्रान्तीय कांग्रेस एम एण्ड एस पार्टी को चुनौती दे सकती हैं। उनके नेतृत्व को अस्वीकार कर सकती है। दरबारिययों के आदेश को मानने से इंकार कर सकती है।
पार्टी महारानी और राजकुमार तो अपने दंभ में इतने डूबे हुए हैं कि उन्हें यह आभास ही नहीं हो रहा है कि लोकतंत्र में पार्टियां जनता बनाती है और नेतृत्व का भार उन्हें ही सौंपा जाता है, जो जननेता होता है। जो जमीन से जुड़ा होता है और जनता के लिए संघर्ष करता है। राजनीतिक पार्टियां आकाश में नहीं बनती और न ही उनका नेता आकाश से टपकता है। मोदी जन नेता हैं। मोदी सुनामी ने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा सार्थक कर दिया है। एम एण्ड एस पार्टी के संचालक और उनके दरबारी जन समर्थन खो चुके हैं, क्योंकि जनता का उन पर भरोसा और विश्वास उठ चुका है। यदि मोदी जन आंकाक्षाओं पर खरे उतरते हैं और सुशासन से जनता को दिल जीत लेते हैं, तो एम एण्ड एस पार्टी का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा।
एम एण्ड एस पार्टी की हालत उस वस्त्रविहिन राजा की तरह है, जिसे देख कर राह से गुजरता हुआ हर व्यक्ति हंसता है, किन्तु जब राजा दरबारियों से हंसने कारण पूछता है तो वे सिर झुकाये बड़े अदब के साथ कहते हैं- हुजूर आप बहुत सुन्दर लग रहे हैं। ये जो लोग आपको देख कर हंस रहे हैं, सब पागल हैं। किन्तु देश भर में फैले हुए कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता और जमीन से जुड़े हुए नेता चिल्ला कर कह सकते हैं- आप पूर्णतया नंगे हो। आप को देख कर धिन्न आ रही है। हमारे सामने से हट जाओं, अन्यथा हम धक्के मार कर आपको हटा देंगे।
जिस दिन देश भर में कांग्रेस के कार्यकताओं और नेताओं की जबान से यह स्वर फूटेगा तब नयी कांग्रेस का पुर्नजन्म होगा। किन्तु पूरे देश में कांग्रेस को पुर्नजीवन देने वाला कोई नेता दिखाई नहीं दे रहा है। सभी नेताओं की हालत उस सरोवर की मछलियों की तरह हो गयी है, जिसका पानी सुख जाने के बाद उसी में पड़े-पड़े तड़फ-तडफ कर मरने के अलावा उनके पास कोई चारा ही नहीं है। राजपरिवार ही उनका सरोवर है, इसके आगे की दुनियां से वे पूरी तरह अनजान है।
यद्यपि कांग्रेस पार्टी की मृत्यु की अधिकृत घोषणा नहीं की गयी है, किन्तु राष्ट्र ने उसकी मुत्यु को स्वीकार कर लिया है। पूरा राष्ट्र शोक संतप्त है। एक महान पार्टी, जिसका भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है, जिसने देश को कई प्रभावशाली नेता दिये हैं, उस पार्टी के प्रति पूरी सहानुभूति हैं। इस दुख की घड़ी में ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं कि अपना स्वाभिमान और आत्माभिमान खो चुके कांग्रेसी नेताओं को सम्बल दें। उन्हें इतनी शक्ति दें कि वे अपनी आंखों के पर्दे के आगे छायी हुई एक राजपरिवार की छवि को ओजल कर दें। उनकी परतंत्रता और अधिनता अस्वीकार कर दें। एक पारिवारिक पार्टी को तिरस्कृत कर दें और जनता से जुड़ी, जनता के लिए सदैव संघर्ष करने वाली एक नयी पार्टी को जन्म दें। दरबारी संस्कृति से मुक्त कांग्रेस पार्टी को एक नयी ऊर्जा और क्षमता दें। यदि वे ऐसा कर पायेंगे, तो भारतीय लोकतंत्र पर उनका बहुत बड़ा उपकार होगा, किन्तु दुर्भाय से ऐसा होने के आसार कम ही दिखाई दे रहे हैं।

Saturday, 17 May 2014

क्या मरणासन्न कांग्रेस को फिर जीवनदान मिलेगा ?

लेकतंत्र को राजतंत्र में तब्दील करने का स्वपन भंग हुआ। सारी संवैधानिक शक्तियों का दुरुपयोग करने के बाद भी अपने पुत्र का औपचारिक राज्याभिषेक करने में कांग्रेस की महारानी असफल रही। अब निश्चित रुप से पांच वर्ष इंतज़ार करना होगा, क्योंकि अब किसी चमत्कार के होने की आशा नहीं बची है। महारानी को इस बात का अहंकार था कि कोई पार्टी अपने बल पर सरकार नहीं बना पायेगी और थक हार कर सत्ता की चाबी उनके पास ही आयेगी। विधानसभाओं के चुनाव जीतने के मतदाताओं को लुभाने के लिए खैरात योजनाएं ले आयी, पर कामयाबी नहीं मिली। मोदी का रथ रोकने के लिए शिखंड़ी केजरीवाल को आगे किया। मुसलमानों को मोदी से भयभीत करने के लिए सेक्युलिरिजम के नाम पर मुस्लिम कार्ड़ खेला, पर पास उलटा पड़ गया। इन नादानियों से कांग्रेस का सफाया हो गया।
मोदी के विरुद्ध जी भर कर जहर उगलने, उन्हें तरह -तरह के अशोभनयी और अभ्रद अलंकारों से अलंकृत करने के लिए उकसाने वाली महारानी भारतीय जनता को समझ नहीं पायी। उसका यह भ्रम टूट गया कि भारतीय मूर्ख और अज्ञानी होते हैं, उन्हें आसानी से अपने वश में किया जा सकता है। लोकसभा चुनावों में पराजय भी इतनी जबरदस्त मिली कि सारे के सारे चापुलस दरबारी चुनाव हार गये। थोड़े बहुत शूरमा ही अपनी इज्जत बचा पायें। मां तो चुनाव जीत गयी, पर पु़त्र को लोहे के चने चबाने पड़े। परन्तु मुस्लिम बहुल उत्तर प्रदेश को जीतने की सारी तिकडम निष्फल हो गयी। शिखंड़ी भी उतरा मुहं ले कर दिल्ली कूच कर गया है।
कांग्रेस की शह पर दिल्ली की जिम्मेदारी से भागे भगोड़ो की वाराणसी जीतने की ख्वाहिश पूरी नहीं हो पायी, अलबता टोपी पहन की कई बार नमाज पढ़ी, मोदी को हराने के लिए विदेशों से भारी भरकम चंदा ले आया, पर वोटों का जुगाड़ नहीं कर पाया। अब जनाब को खोयी इज्जत बचाने और दिल्ली विधानसभा में पार्टी के विधायाकों को सम्भालना मुश्किल हो रहा है। कांग्रेसी नेताओं को केजरीवाल दुखान्तिका से यह सबक लेना चाहिये कि युद्ध सार्थक रणनीति और अपनी क्षमता को बढ़ाने से जीता जाता है, शिखंडियों को आगे कर के नहीं जीता जाता।
दो दिन पहले अच्छे दिन आने वाले हैं, नारे को व्यंगात्मक शैली में लेने वाले प्रमुख दरबारी जो आजकल चरित्रहीनता के सिरमौर बन कर कांग्रेस की नाक कटवा रहे हैं, कह रहे थे- अच्छे दिन तो निर्मल बाबा भी लाते हैं। दो दिन बाद देख लेना किस के अच्छे दिन आने वाले हैं। अब ये व्यभिचारी नेता, जो बिना शादी रचाये एक ब्याहता स्त्री, जिसका तलाक नहीं हुआ है, पता नहीं इस समय किस कन्द्रा में जा कर अय्यासी कर रहे हैं ? पूरा देश इनकी जबान से दो कडवे शब्द सुनने की प्रतीक्षा कर रहा है। दरअसल वो मीडिया, जो मोदी को ले कर बात का बतंगड़ बनाता था, इन महाशय का जलवा ही नहीं दिखा रहा है। टीवी के कई समाचार चेनल, जो शिखंडी केजरीवाल, दराबारी कांग्रेसियों के पेरोकार थे, वक्त बदलने पर अपने आप इनसे दूरियां बना कर अपनी खैर मना रहे हैं।
दुर्भाग्य से महात्मा गांधी और पटेल की कांग्रेस को व्यभिचारी प्रवक्ता ही मिलें। मनु सींघवी भी व्यभिचार के आरोप से बरी नहीं हो पायें अब दिग्विजय सिंह बेशर्मी से व्यभिचार को निजी मामला बता रहे हैं। कांग्रेस की आज हालत हुई है, उसका कारण भी बिना पैंदें के ऐसे नेता ही है, जो बराबर अर्नगल बोल कर पार्टी की इमेज बिगाड़ रहे हैं। पार्टी को मरणासन्न अवस्था में पहुंचाने का पूरा श्रेय पार्टी राजमाता, उनके पुत्र और दरबारियों की जमात को जाता है। कांग्रेस पार्टी को यदि पुनः जीवनदान देना है, तो जमीन से जुड़े राजनेताओं को राजवंशीय परम्परा के विरुद्ध विद्रोह करना होगा। भाजपा 2009 में पाये 18 प्रतिशत वोटों को 48 प्रतिशत तक पहुंचा सकती है, तो कांग्रेस भी पांच सालों में अपनी स्थिति सुधार सकती है।
परन्तु यदि अब भी कांग्रेसी नेता एक परिवार की पूंछ पकड़ कर नैया पार करना चाहते हैं, तो अब नये भारत में यह सम्भव नहीं होगा। क्योंकि अब भारतीय जनता एक परिवार की दासता को अस्वीकृत कर चुकी है। कांग्रेसी नेताओं को भी साहस कर हार की जिम्मेदारी का ठीकरा मां-पुत्र पर फोड़ना पडे़ेगा। जो हकीकत है, उसे स्वीकार करना होगा। कांग्रेस की जो गत इसी परिवार की कृपा से बनी है। अब राजवंशीय परम्परा से चुनाव जीतना सम्भव नहीं होगा। अब चुनाव सेक्युलिरिजम का राग गाने से भी नहीं जीते जा सकेंगे। जातीय समीकरण बिठाने और मुस्लिम वोटों के भरोसे भी चुनाव जीतना सम्भव नहीं होगा। चनाव जीतने के लिए जनता का दिल जीतना होगा। जनता के मन में अपने कार्य और क्षमता के प्रति विश्वास बिठाना होगा।
कांग्रेसी नेता अब भी यदि एक परिवार की परिक्रमा करने के बजाय अपने-अपने क्षेत्र में जा कर बिना सांसद और विधायक बने ही जनता के दुख-दर्द में भागिदारी निभायेंगे और उनकी आवाज उठायेंगे, तो वे मरणासन्न अवस्था में पहुंची कांग्रेस को जीवन दान दे सकते हैं। किन्तु एक परिवार की स्तुति गान करने में ही लगे रहे, तो कांग्रेस मुक्त भारत के नारे को सार्थक बना देंगे। तीन बार मर कर वापस जीवित हुई पार्टी की हमेशा के लिए मौत हो जायेगी। वे सारे कांग्रेसी अनाथ हो जायेंगे, जिनकी अब भी अपनी पार्टी के प्रति आस्था जुड़ी हुई है।