प्रदूषणमुक्त दीपावली मनाएं ।
दीपावली अर्थात पटाखे जलाना, ऐसा समीकरण ही लोगोंके मनमें बन गया है;
परंतु वास्तवमें दीपावलीमें पटाखे जलानेके प्रचलनके संदर्भमें हिंदु
धर्मशास्त्रमें कोई भी आधार नहीं है । आनंदके क्षणोंमें पटाखे जलाना, यह
विदेशी प्रथा है, परंतु अब हिंदुस्तानके लिए यह एक राष्ट्रीय समस्या बन गई
है । भजन, आरती अथवा सात्त्विक नादके कारण उस स्थानपर अच्छी शक्ति एवं
देवी-देवता आते हैं; परंतु पटाखोंकी ध्वनि एवं धुएंके कारण उस वातावरणकी ओर
आसुरी शक्तियां आकर्षित होती हैं । उनमें विद्यमान तमोगुणके परिणामके कारण
मानवकी वृत्ति भी तामसिक बनती है ।
पटाखोंके कारण होनेवाला प्रदूषण
१. वायुप्रदूषण : ‘पटाखोंमें बडी मात्रामें विषैले घटक होते हैं । उसमें
विद्यमान तांबा, कैडनियम, सीसा, मैग्नेशियम, जस्ता, सोडियम इत्यादि घटकोंके
कारण पटाखे जलानेपर उससे विषैली वायु उत्सर्जित होती है ।
२.
ध्वनिप्रदूषण : ध्वनिका स्तर दिनके समय ५५ डेसिबल तथा रात्रिके समय ४५
डेसिबलतक होना चाहिए । रात्रि दस बजेसे प्रातः छः बजेतक पटाखे जलाना
प्रतिबंधित है । मनुष्यप्राणी ७० डेसिबलतक ध्वनि सह सकता है ।
प्रदूषणके कारण होनेवाली हानि
पटाखोंमें विद्यमान धातु तथा रासायनिक पदार्थोंके संयोगसे निर्माण
होनेवाला प्रदूषण मानवीय स्वास्थ्यके लिए घातक होता है । इसी प्रकार पटाखे
जलाते । समय लगनेवाली चोट अथवा दुर्घटना बालकोंके लिए चिंताजनक है ।
१.
कार्बन मोनोआक्साईड एवं नायट्रोजन डायआक्साईड जैसी विषैली वायु आतिशबाजीसे
निर्माण होती है, जो मानवीय जीवनके लिए अत्यंत घातक है ।
२. सिरदर्द, बहरापन तथा मानसिक अशांति इत्यादि व्याधियां उत्पन्न होती हैं ।
३. हृदयरोग, रक्तदाब, अस्थमा, क्रोनिक ब्राँकायटिस इत्यादिसे पीडित
लोगोंके लिए यह अधिक घातक है । गर्भवती स्त्रियां, वृद्ध मनुष्य, छोटे
बच्चोंके लिए भी अधिक धोखेकी संभावना होती है ।
४. पटाखे जलाते समय
सर्वसाधारण निरोगी व्यक्तियोंको भी अपच, सर्दी-खांसी, मानसिक अशांति, सिर
दर्द, धडकन बढना इत्यादि रोग होते हैं ।
५. मानवको जितना प्रदूषणसे
कष्ट होता है, उसकी अपेक्षा सौ गुना अधिक कष्ट कुत्ते, बिल्ली, पशु-पक्षी
एवं सूक्ष्म जीव-जंतुओंको होता है ।
उपाय
‘ऊंची आवाज तथा जीवित
एवं वित्तकी हानि कर विविध प्रकारसे होनेवाला प्रदूषण रोकनेके लिए
नियमोंपर का कार्यवाही करनी चाहिए । ऊंची आवाज करनेवाले पटाखोंपर प्रतिबंध
लगना ही चाहिए ।’
पटाखोंद्वारा देवताके चित्रोंका होनेवाला अनादर रोकें !
आजकल हिंदू देवता एवं राष्ट्रपुरुषोंके चित्र अथवा उनके नामवाले
पटाखोंका उत्पादन बडी मात्रामें किया जाता है । दीपावली तथा अन्य उत्सवोंके
अवसरपर पटाखे जलानेसे देवता एवं राष्ट्रपुरुषोंके चित्रोंका अनादर होता है
तथा निम्नानुसार हानि होती है -
१. जहां देवताका नाम अथवा रूप
होता है वहां उस देवताका तत्त्व होता है, अर्थात् सूक्ष्मरूपसे देवताका
अस्तित्व होता है ! लक्ष्मीपूजनके पश्चात् हम श्री लक्ष्मी, श्रीकृष्ण आदि
देवता एवं राष्ट्र-पुरुषोंके चित्रोंवाले पटाखे भी जलाते हैं । इस कारण उन
चित्रोंके चिथडे-चिथडे हो जाते हैं तथा वे पैरोंतले आते हैं । इस प्रकारके
अनादरसे देवताका अपमान होता है तथा इससे पाप लगता है ।
२. आस्थाके केंद्रका इस प्रकार अनादर करनेसे हमपर उनकी अवकृपा ही होती है ।
३. राष्ट्रपुरुषोंके चित्रवाले पटाखे जलाना, उनके त्याग और बलिदानके प्रति कृतघ्नता ही है ।
इसलिए देवता एवं राष्ट्रपुरुषोंके नाम अथवा चित्रोंवाले पटाखे न जलाएं
। यह धर्महानि स्वयं रोकना तथा अन्योंको जागरूक करना धर्मपालन ही है !
हिंदुओ, आपको पटाखे जलानेके उपरांत प्राप्त क्षणभंगुर सुख चाहिए अथवा धर्म एवं
पर्यावरणकी रक्षासे भावी पीढियोंको मिलनेवाला शाश्वत आनंद चाहिए, इसका विचार करें
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