सतालोलुप उद्धण्ड़ परिवार और उसकी चाटुकार मंड़ली भारतीय लोकतंत्र को पुन: नियंत्रण में ले कर इसे राजतंत्र में परिवर्तित करने के लिए मचल रही है। एक परिवार को सत्ता से हटा कर भारतीय लोकतंत्र मजबूत हो कर उभरा है। संसद में और सड़को पर निरर्थक चीख पुकार का कोर्इ असर भविष्य में होने वाला नहीं है। परिवार और उनके अनन्य भक्त चाहे जितनी कोशिश कर लें, अब भारत की जनता एक परिवार की दासता स्वीकार नहीं करेगी। उन्मादग्रस्त हो जो जनता की सरकार पर अनावश्यक प्रहार कर लोकतंत्र की जड़े काटने का प्रयास कर रहे हैं, वे शायद भूल रहे हैं कि उनके प्रहार से लोकतंत्र का मजबूत वृक्ष कटेगा नहीं।
देश की समस्याओं पर कभी गहन मंथन नहीं किया। अपना कोर्इ चिंतन राष्ट्र के समक्ष नहीं रखा। जनता को गरीबी, बैरोजगारी और पिछड़ेपन से कैसे मुक्ति दिलार्इ जा सके, ऐसी किसी कार्ययोजना पर काम नहीं किया। अकर्मण्यता और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी प्रशासनिक व्यवस्था को र्इमानदार और चुस्त दुरुस्त करने का कभी प्रयास नहीं किया। वर्षों तक राजनीति में रहे, किन्तु जो भारत को समझने में नितांत असफल रहें, वे भारत पर शासन करने का अपना अधिकार समझते हैं। उनके अनुयायी जनादेश को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। वे यह मानने के लिए भी तैयार नहीं है कि भारत पर शासन का अधिकार एक परिवार से बाहर का व्यक्ति भी कर सकता है।
उद्धण्ड़ता, आक्रामकता, स्वामीभक्ति से लबोलुआब एक परिवार अपने झूठ और फरेब से जनता को भ्रमित करने का प्रयास कर रहा है, ताकि जनता इनके बहकावा में आ कर फिर परिवार की दासता स्वीकार कर लें। जनता द्वारा चुनी हुर्इ सरकार को ये लोग एक व्यक्ति और चंद उद्योगपतियों की सरकार बता रहे हैं, पर न तो इनके पास अपनी बात को साबित करने के लिए तर्क है और न ही अपनी कही गर्इ बात के कोर्इ अकाट्य प्रमाण ।
छिछोरापन और असंगत अभद्र शब्दावली अपरिपक्कता मानसिकता की निशानी है। जबकि हकीकत यह है कि दस वर्षों तक भारत पर एक लुटेरे परिवार ने शासन किया था और शासन और प्रशासन की सारी शक्तियों को अपने पास केन्द्रित कर रखा था। देश के संसाधनो को जम कर लूटा था, जिसके प्रमाण देश के पास हैं। न्यायालय ने भी इस पर अपनी मुहर लगा रखी है। फिर क्यों अपनी कीचड़ से सनी सूरत को आर्इने में देखने के बजाय दूसरों पर कीचड़ उछाल रहे हैं? क्या एक परिवार और उसके भक्त यह मानते हैं कि भारत की जनता ने उनके पापों को भुला, उन्हें क्षमादान दे दिया है ?
आक्रामक तेवर अपना कर बात बात पर जो लोग मोदी सरकार को कटघरें में खड़ा करते हैं, वे इस बारें में आक्रामक हो कर अपनी सफार्इ क्यों नहीं देते कि टूजी स्पेक्ट्रम और कोलगेट जैसे कर्इ ऐतिहासिक घोटालें उनके शासन के दौरान नहीं हुए थे ? इस बात का खण्ड़न क्यों नहीं करते कि लाखों करोड़ के घोटालों में उनकी कोर्इ भागीदारी नहीं थी ? भूमिका नहीं थी ? गबन किये गये सरकारी धन का एक ढेला भी उनके पास नहीं है ? भारत की सत्ता पाने के लिए बावले हो रहे लोग राष्ट्र को यह क्यों नहीं समझा पा रहें है कि घोटाले किन लोगों ने किये थे ? घोटालों का धन किस के पास है ? यदि इस बारें में बोलने के लिए उन्होंने अपने होंठ सी सखें हैं तो उन्हें किसी अन्य मामलें में बोलने का कोर्इ नैतिक अधिकार नहीं है।
आक्रामक तेवर अपना कर बात बात पर जो लोग मोदी सरकार को कटघरें में खड़ा करते हैं, वे इस बारें में आक्रामक हो कर अपनी सफार्इ क्यों नहीं देते कि टूजी स्पेक्ट्रम और कोलगेट जैसे कर्इ ऐतिहासिक घोटालें उनके शासन के दौरान नहीं हुए थे ? इस बात का खण्ड़न क्यों नहीं करते कि लाखों करोड़ के घोटालों में उनकी कोर्इ भागीदारी नहीं थी ? भूमिका नहीं थी ? गबन किये गये सरकारी धन का एक ढेला भी उनके पास नहीं है ? भारत की सत्ता पाने के लिए बावले हो रहे लोग राष्ट्र को यह क्यों नहीं समझा पा रहें है कि घोटाले किन लोगों ने किये थे ? घोटालों का धन किस के पास है ? यदि इस बारें में बोलने के लिए उन्होंने अपने होंठ सी सखें हैं तो उन्हें किसी अन्य मामलें में बोलने का कोर्इ नैतिक अधिकार नहीं है।
नेशनल हैरल्ड़ प्रकरण पर परिवार के चाटुकार वकील भोंथरे तर्कों से यह बात देश की जनता को समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि कम्पनियें बना कर एक अखबार की अरबों रुपये की सम्पति हडप्पने में एक पैसे का भी घोटाला नहीं हुआ। परन्तु पारिवारिक पार्टी मामले को न्यायालय में जाने से क्यों भयभीत हो रही है ? क्यों अपनी खीझ संसद के कामों में व्यवधान डाल कर प्रकट कर रही है ? क्या यह छल की पराकाष्ठा नहीं हैं ? चोरी भी करेंगे और उत्पात मचा कर चोरी को साबित नहीं होने देंगे, ऐसी कपटपूर्ण नीति को क्या कहेंगे ? हम उनकी बेतुकी बातें सुन रहे हैं, यह हमारी सहनशीलता हैं, परन्तु वे इस बात पर क्यों आश्वस्त है कि जो कुछ हम कहेंगे, देश की जनता स्वीकार कर लेगी ?
शताब्दियों से भारत को विदेशी आक्रान्ताओं ने हमारी दुर्बलताओं का लाभ उठा जम कर लूटा। इतिहास के हर मोड़ पर लुटेरों को जयचंद मिले, जिन्होंने अपने स्वार्थ के लिए देश की सम्प्रभुता के साथ सौदा किया। विदेशी आक्रान्ताओं ने हमारी आपसी फूट का खूब लाभ उठाया। अब विदेशी लुटेरे हमें जाति और धर्म के आधार पर बांट कर हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर नियंत्रण स्थापित कर लूट को अंजाम दे रहे हैं। क्या हम एकजुट हो कर इस दुर्भाग्यजनक स्थिति को बदल नहीं सकते ?
यह हक़ीकत है कि एक पारिवारिक पार्टी के संचालाकों ने दस वर्ष तक देश के संसाधनों को जम कर लुटा। दुर्भाग्य से इस पार्टी पर एक विदेशी महिला का नियंत्रण है और पार्टी के भीतर से कोर्इ भी पदाधिकारी उन्हंं चुनौति देने की स्थिति में नहीं है। यह पार्टी अब सत्ता से बाहर है, किन्तु हमारी दुर्बलता का लाभ उठा कर फिर सत्ता पाना चाहती है, ताकि निर्बाध लूट के क्रम को जारी रखा जा सके। निश्चय ही इनकी नीति और नीयत सही नहीं है। परिवार के भक्तों की चाटुकार मंड़ली इनकी अधीनता स्वीकार कर रही है, पर भारतीय लोकतंत्र ऐसा नहीं कर पायेगा।
निरर्थक प्रपंच और बतंगड़ के जरिये पारिवारिक पार्टी संसद को ठपप कर रही है और जब तक इनके संचालाकों के हाथ में सत्ता नहीं आती, ये अपने उपक्रम को जारी रखेंगे। परन्तु हम क्यों मौन हो कर इनके कपट को मान्यता दे रहे हैं ? एक सरकार को पांच वर्ष के लिए जनता ने चुना है और इसे जनता ने ही काम करने का अधिकार दिया है, फिर एक विदेशी को क्या अधिकार है कि अपने चाटुकारों के जरिये ससंसद में उत्पात मचायें ? हम इन उत्पादियों को यह क्यों नहीं बताने का प्रयास करते कि भारतीय लोकतंत्र एक परिवार के समक्ष आपकी तरह नतमस्तक हो कर नहीं खड़ा है ? दरअसल हमारे मौन से इनका साहस बढ़ रहा है। हम इन्हें पूरी तरह तिरस्कृत कर यह साबित कर सकते हैं कि अपने स्वार्थ के लिए भारतीय लोकतंत्र को बंदी बनाने का प्रयास मत करो। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की संचालक जनता होती है कोर्इ व्यक्ति या परिवार नहीं।