Tuesday, 3 February 2015

मुस्लिम रहनुमाओं की सियासत के दुष्परिणाम

मजबूत वोट बैंक की राजनीति ने भारतीय मुस्लिम समुदाय को दारिद्रय का उपहार दिया। उन्हें अशिक्षित रख कर अच्छी नौकरियों से वंचित कर दिया, किन्तु समझाया यह गया कि आपका हम कितना सम्मान करते हैं-एक ही देश के नागरिक है, किन्तु आपकों शरियत नियमों के अनुसार एक से अधिक बीवीयां रखने का अधिकार हैं, जो हिन्दुओं को नहीं दिया गया है। आपको हज़ जाने में सब्सिड़ी देंगे, किन्तु हिन्दुओं को तीर्थ यात्रा जाने के लिए नहीं देंगे। मोलवियों को वेतन देंगे, किन्तु मंदिर के पुजारियों को वंचित रखेंगे। यह सब कुछ इसलिए किया गया, क्योंकि दूसरे समुदाय के मन में नफरत पैदा हो जाय। वे छोटी-छोटी बातों पर उग्र हो जायें। दोनों समुदाय में खार्इ बनी रहें, ताकि तूुष्टीकरण के सहारे रहनुमा अपने सियासी दावं -पेच चलाते रहें।
वर्षों तक मुस्लिम वोटबैंक के सहारे कांग्रेस  सियासत करती रही और राजसुख भोगती रही, किन्तु जब हिन्दुओं ने एकजुट हो कर राजीवगांधी को ऐतिहासिक बहुमत दिया, तो उन्होंने हिन्दू वोटबैंक के लिए रामजन्म भूमि के ताले खुलवाये। यह बर्र के छज्जे पर फैंका गया पत्थर था, जिससे भारत की सियासी फिज़ा बदल दी । भाजपा ने अपना खोया जन आधार पुन: पाने के लिए रामजन्म भूमि आंदोलन छेड़ दिया। कांग्रेस के धोखे से तिलमिलाये मुस्लिम समुदाय को अपने पक्ष में करने के लिए कर्इ नये रहनुमा मैदान में उतर गये। रामजन्म भूमि विवाद का समयपूर्व हल निकल जाता, यदि रहनुमा मुस्लिम समुदाय को आवेशित और उतेजित नहीं करते। यदि ऐसा होता, तो बाबरी मज्जिद का विध्वंश नहीं होता। दाऊद गेंग को बम्बर्इ में बम विस्फोट करने का बहाना नहीं मिलता। गोधरा दुखान्तिका नहीं घटती, जिससे गुजरात नहीं झुलसता। किन्तु इस सारे गौरखधंधे से नये रहनुमाओं को बिहार और उत्तरप्रदेश में सत्ता सुख भोगने का अवसर मिल गया। दोनों प्रदेशों का मुस्लिम वोट बैंक खिसकने के बाद कांग्रेस  की सत्ता डगमगा गयी।
अब बाबरी म​िज्ज़द तो रहीं नहीं। वर्षों से राम लला तंबु में बिराजे हैं। मुस्लिम समुदाय ने नहीं, उनके रहनुमाओं ने ठान लिया है कि चाहे जो हो जाय, वहां राममंदिर नहीं बन सकता। दुर्भाग्य से भारत का मुस्लिम समुदाय नहीं चाहता है कि अयोध्या में राममंदिर नहीं बने, किन्तु उनके रहनुमाओं को इससे एतराज है,  क्योंकि ऐसा हो गया तो उनकी सारी सियासत दांव पर लग जायेगी। दोनो समुदाय की गलतफहमियां दूर हो गयी और भार्इचार बढ़ गया, तो वे कहां जायेंगे ? रहनुमाओं ने हिन्दुओं के अपने ही देश में अपने आराध्य देव का मंदिर बनाने से भी वंचित कर रखा है। यह तुष्टीकरण राजनीति की पराकाष्ठा है।
बंगला देश के नागरिक द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त की धज्जियां उड़ाते हुए रोजी रोटी की तलाश में भारत में प्रवेश करते रहे। महानगरों में बड़ी-बड़ी अवैध बस्तियां बस गयी। बंगाल और आसाम में जन संख्या विस्फोट हो गया। असम में बहुसंख्यक अल्पसंख्यक बन गये हैं और बंगाल में बराबरी पर आने वाले हैं।  बंगाल में पहले वामपंथी इनके रहनुमा बन कर इन्हे भारतीय नागरिक बनाने में पूरा सहयोग दिया, अब ममता दीदी के ये मजबूत वोट बैंक बन गय हैें। दीदी इनकी इतनी हमदर्द बन गयी है कि ये जो चाहे अपराध करें, दीदी इनके लिए झगड़ने के लिए बेताब रहती है। वामपंथियों और तृणमुल कांग्रेस की ही तर्ज पर कांगे्रस ने बंगलादेशियों का असम में भारतीय नागरिक बनाया है। मुस्लिम रहनुमाओं ने देश को कितना भारी नुकसान पहुंचाया है, यह इस उदाहरण से स्पष्ट है।
पच्चीस वर्ष पूर्व कश्मीरी पंड़ितो पर अमानुषिक अत्याचार कर उन्हें पूरखों की ज़मीन छोड़ने पर मजबूर कर दिया। आज भी ये अपने ही देश में शरणार्थी बने हुए है। इनके दर्द से किसी मुस्लिम रहनुमा का दिल नहीं पिघला। किसी की जबान से सहानुभूति का एक शब्द नहीं निकला, किन्तु बारह वर्ष पूर्व घटित हुए गुजरात दंगों को ले कर बराबर कोहराम मचाते रहे। पूरे विश्व में गुजरात के मुख्यमंत्री को बदनाम करने की कोर्इ कसर बाकी नहीं रखी। एक ही देश में दो समुदायों की तकलीफों को ले कर इतना भेद-भाव आपको दुनियां के किसी कोने में नहीं दिखार्इ देगा।
तुष्टीकरण ने भारतीय राजनीति की परिभाषा बदल दी। राजनीति में वे लोग शीर्ष पर पहुंचने लगे, जो निकृष्टम चारित्रिक ​विशेषताएं रखते हैं, किन्तु  जिनके पास मुस्लिम वोटबैंक को अपने पक्ष में कर चुनाव जीतने की क्षमता हैं। फलत: राजनीति का स्तर गिरता गया। राजनेताओं का भ्रष्ट आचरण बढ़ता गया। देश के गलत हाथों में जाने से देश का विकास रुक गया। आधी से अधिक जनसंख्या गौर गरीबी में जीवन यापन करने लगी। मुस्लिम समुदाय के रहनुमाओं का भविष्य संवर गया, किन्तु भारत का भविष्य दांव पर लग गया।
वर्षों बाद भारतीय राजनीति में नरेन्द्र मोदी के उत्कर्ष ने सत्ता प्राप्ति के सारे समीकरण बदल दिये हैं। वे मुस्लिम रहनुमाओं की कलुषित राजीनति को रौंदते हुए शीर्ष पर पहुंचें है। तुष्टीकरण नहीं, सभी की संतुष्टी ही उनका मुख्य ध्यये है। एक का साथ दूसरें को धोखा की जगह वे सबका साथ, सबका विकास का नारा लगा रहे हैं। रहनुमा कर्इ तरह की भ्रांतियां फैला कर मुस्लिम समुदाय को उनसे दूर रखने का प्रयास कर रहे है। काश! भारतीय मुस्लिम उनके साथ हो जाय, तो भारत से तुष्टीकरण राजनीति की सदा के लिए विदार्इ हो जाय।
 

Sunday, 1 February 2015

देश जानना चाहता है- क्या केजरीवाल देशद्रोही है ?

दिल्ली प्रदेश का चुनाव इसलिए महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि इस चुनाव में वे तत्व अत्यधिक सक्रिय दिखार्इ दे रहे हैं, जिनका भारत के संविधान और लोकतंत्र में आस्था नहीं हैं। जिन्हें पाकिस्तान और अरब देशों से भारत में विध्वंसाात्मक गतिविधियां चलाने के लिए धन और अप्रत्यक्ष सहयोग मिल रहा है। क्या केजरीवाल ने दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के लिए इन तत्वों से साठगांठ कर ली है ? उन पर लगाये गये आरोप में यदि एक प्रतिशत भी सच्चार्इ है तो केजरीवाल राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन गये हैं। ऐसे व्यक्ति के पक्ष में एक भी  वोट देना राष्ट्रद्रोही को महिमामंड़ित करना है।
केजरीवाल से इन दिनों जो सवाल पूछे जा रहे हैं या पूछे जायेंगे उनमें से किसी का जवाब उनके पास नहीं है। वे इन सवालों का जवाब देने के बजाय निरर्थक मुद्धों को उठा कर सवालों का जवाब टाल देते हैं, किन्तु इनमें से एक सवाल बहुुत गम्भीर है, जिसे सुन कर कोर्इ भी देशभक्त व्यक्ति तिलमिला सकाता है और तुरन्त जनता के सामने आ कर उसका सप्रमाण उत्तरर देना अपना नैतिक दायितव  मानता है, किन्तु इस बारें में केजरीवाल की चुप्पी यह साबित करती है कि उनकी नीयत में खोट हैं और अपने क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ के लिए वे बहुत नीचे तक गिर गये हैं।
पाकिस्तान, बंगलादेश और दुबर्इ से आ रहे गुप्त फोन कॉल इस शक को पुख्ता करते हैं कि हो न हो भारत का अहित चाहने वाले विदेशी केजरीवाल में अत्यधिक रुचि दिखा रहे हैं। पूर्व में भी बाटला हाऊस प्रकरण के आतंकियों को शहीद बताना। गिलानी से अच्छे संबध रखना। पाकिस्तानी हरकतों पर कभी कुछ नहीं बोलना यह साबित करता है कि केजरीवाल के मन में देशद्रोही तत्वों के प्रति सहानुभूति है और अपना राजनीतिक स्वार्थ साधने के लिए इनसे सहयोग लेने में संकोच नहीं करते।
बनारस में मोदी जी के विरुद्ध चुनाव लड़ने का असली मकसद भी उन देशद्रोही तत्वों को तुष्ट करना ही था। उस समय उनके पास विदेशों से प्रचुर धन आया था, जिसका हिसाब उन्होंने आज तक नहीं दिया है। वे दे भी कैसे सकते हैं, क्योंकि ऐसा धन चेक से तो आ ही नहीं सकता। सम्भव है हवाला कारोबारियों या पाकिस्तानी एजेंटों के जरिये गुप्त रुप से उपलब्ध कराया होगा। यह भी सम्भव है ऐसे तत्वों से उनकी दोस्ती प्रगाढ़ हो गयी होगी, अत: उनसे फिर धन का जुगाड़ करने वे दुबर्इ गये थे।
केजरीवाल जिस ढंग से बेतहाशा खर्च कर रहे हैं, उससे यह प्रश्न उठना उचित है कि उनके पास अचानक इतना धन कहां से आ गया ? जिस पार्टी का अभी जन्म ही हुआ है और जिसकी अकाल मृत्यु की सम्भावना नज़र आ रही है, उसे किसने इतना धन मुहैया कराया ? पिछले छ: माह से केजरीवाल ने पूरी दिल्ली को पोस्टरों से भर दिया है। निश्चय ही इस हेड में वे निरन्तर भारी मात्रा में धन खर्च कर रहे हैं। वहीं अपने साथ जो भीड़ ले कर चलते हैं, वे समर्पित कार्यकर्ता नहीं है, अपितु पैसे और शराब से खरीदे गये लोग हैं। पैसे के बल पर कर्इ पत्रकारों और न्यूज चेनलों को इन्होंने अपने पक्ष में वातावरण बनाने के लिए खरीद रखा हैं। फर्जी सर्वेक्षण करा कर ऐसा वातावरण बनाया जा रहा है, जिससे लगे कि केजरीवाल की जीत निश्चित हैं।
केजरीवाल नैतिक मूल्यों की स्थापना करने और भ्रष्टाचार मिटाने का नारा लगाते हुए राजनीति में  आये हैं, किन्तु व्यवहार में वे आज सर्वाधिक अनैतिक आचरण वाले व्यक्ति बन गये हेैं, क्योंकि उन्होंने भारत विरोधी ताकतों से धन ले कर दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने का निश्चय किया है। यह भ्रष्ट आचरण की पराकाष्ठा है, जिसे कोर्इ भी स्वाभीमानी देशभक्त भारतीय नागरिक स्वीकार नहीं कर सकता।
दिल्ली विधानसभा में केजरीवाल की आप पार्टी को कितनी सीटे मिलेगी और वे मुख्यमंत्री बन पायेंगे या नहीं, यह तो वक्त ही बतायेगा, किन्तु उन्होंने राष्ट्रीय हितो को तिरोहित करते हुए जो अनैतिक आचरण अपनाया है, वह गम्भीर जांच का विषय बन गया है। पूरे देश के प्रदेशों में विधानसभा की सैंकड़ो सीटे हेै, उसमें से यदि दिल्ली प्रदेश की कुछ सीटे केजरीवाल जीत भी जाये, तो इसे बहुत बड़ी जीत नहीं माना जा सकता। किन्तु ऐसा करने के लिए वे जो कुछ कर रहे हैं, उससे देश की सम्प्रभुता को ठेस पहुंच रही  है। केजरीवाल की झूठ, प्रपंच के बाद देशद्रोही राजनीति को निकृष्टतम राजनीतिक शैली कहा जा सकता है, जिसका यदि शीघ्र ही अवसान नहीं हुआ, तो इसके दुष्परिणाम पूरे देश को  भोगने पड़ेंगे, क्योंकि यदि कोर्इ व्यक्ति अपनी राजनीति को राष्ट्रीय हितो से ऊपर मानता है, उसे किसी भी प्रकार का समर्थन देना राष्ट्रद्रोह को प्रोत्साहित करना ही है।
दुर्भाग्य से टीवी चेनलों से जुड़ी हुर्इ भारत की बोद्धिक जमात जानबूझ कर केजरीवाल जैसे विवादास्पद शख्सियत को अत्यधिक महत्व दे रही है। चेनल के मालिक तो विदेशी है। हो सकता है, वे भारत का हित नहीं चाहते हों, किन्तु पत्रकार तो  भारतीय है, उनके सामने ऐसी क्या विवशता है ? ये चेनल मोदी सरकार बनने के पहले भी मोदी जी के विरुद्ध बतंगड़ कर रहे हैं और बनने के बाद भी अपने रवैये में सुधार नहीं कर रहे हैं, क्योंकि बहुत सी भारत विरोधी ताकतें भारत में स्थिर राजनीतिक परिस्थितियां और काम करने वाली सुदृढ़ सरकार नहीं चाहती।
दिल्ली प्रदेश भारत का यद्यपि छोटा प्रदेश है, जिसके मुख्यमंत्री के पास कोर्इ विशेष अधिकार नहीं है, किन्तु दिल्ली भारत की राजधानी है, अत: पूरे देश में सक्रिय राष्ट्रद्रोही तत्व, जो भारत में विदेशी सरकारों की शह पर काम कर रहे हैं, वे केजरीवाल को हर तरह से समर्थन दे कर मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं, ताकि उनका हितैषी मुख्यमंत्री मिल जाय। यदि केजरीवाल पर लगाया जा रहा यह आरोप सही है तो भारत के सभी राजनीतिक दलों का एक हो कर केजरीवाल की राजनीतिक शैली का विरोध करना चाहिये, किन्तु जो राजनेता मोदी प्रभाव से घबराये हुए है, वे धर्मनिरपेक्षता की दुहार्इ दे कर केजरीवाल के पक्ष में खड़े हैं, ताकि केजरीवाल यदि दिल्ली का मुख्यमंत्री बन जाये, तो अपने-अपने प्रदेशों में जा कर यह शंखनाद कर सकें कि मोदी का जादू कम हो गया है।
कांग्रेस पार्टी, जिसका जनाधार केजरीवाल ने अपनी ओर खींच लिया है, चुनावों के परिणाम आने के पहले ही केजरीवाल के समक्ष समर्पण की मुद्रा में दिखार्इ दे रही है, इसीलिए राहुलगांधी केजरीवाल के कृत्यों को जनता के समक्ष उजागर करने के बजाय, मोदी जी  की आलोचना कर रहे हैं। भाजपा चुनौती का पूरी प्रतिबद्धता से मुकाबला कर रही है। यदि  भाजपा एक देशद्रोही व्यक्ति के राजनीतिक जीवन का अंत करने में सफल रहती है, तो यह देश पर बहुत बड़ा उपकार होगा।