मजबूत वोट बैंक की राजनीति ने भारतीय मुस्लिम समुदाय को दारिद्रय का
उपहार दिया। उन्हें अशिक्षित रख कर अच्छी नौकरियों से वंचित कर दिया,
किन्तु समझाया यह गया कि आपका हम कितना सम्मान करते हैं-एक ही देश के
नागरिक है, किन्तु आपकों शरियत नियमों के अनुसार एक से अधिक बीवीयां रखने
का अधिकार हैं, जो हिन्दुओं को नहीं दिया गया है। आपको हज़ जाने में
सब्सिड़ी देंगे, किन्तु हिन्दुओं को तीर्थ यात्रा जाने के लिए नहीं देंगे।
मोलवियों को वेतन देंगे, किन्तु मंदिर के पुजारियों को वंचित रखेंगे। यह सब
कुछ इसलिए किया गया, क्योंकि दूसरे समुदाय के मन में नफरत पैदा हो जाय। वे
छोटी-छोटी बातों पर उग्र हो जायें। दोनों समुदाय में खार्इ बनी रहें, ताकि
तूुष्टीकरण के सहारे रहनुमा अपने सियासी दावं -पेच चलाते रहें।
वर्षों तक मुस्लिम वोटबैंक के सहारे कांग्रेस सियासत करती रही और राजसुख भोगती रही, किन्तु जब हिन्दुओं ने एकजुट हो कर राजीवगांधी को ऐतिहासिक बहुमत दिया, तो उन्होंने हिन्दू वोटबैंक के लिए रामजन्म भूमि के ताले खुलवाये। यह बर्र के छज्जे पर फैंका गया पत्थर था, जिससे भारत की सियासी फिज़ा बदल दी । भाजपा ने अपना खोया जन आधार पुन: पाने के लिए रामजन्म भूमि आंदोलन छेड़ दिया। कांग्रेस के धोखे से तिलमिलाये मुस्लिम समुदाय को अपने पक्ष में करने के लिए कर्इ नये रहनुमा मैदान में उतर गये। रामजन्म भूमि विवाद का समयपूर्व हल निकल जाता, यदि रहनुमा मुस्लिम समुदाय को आवेशित और उतेजित नहीं करते। यदि ऐसा होता, तो बाबरी मज्जिद का विध्वंश नहीं होता। दाऊद गेंग को बम्बर्इ में बम विस्फोट करने का बहाना नहीं मिलता। गोधरा दुखान्तिका नहीं घटती, जिससे गुजरात नहीं झुलसता। किन्तु इस सारे गौरखधंधे से नये रहनुमाओं को बिहार और उत्तरप्रदेश में सत्ता सुख भोगने का अवसर मिल गया। दोनों प्रदेशों का मुस्लिम वोट बैंक खिसकने के बाद कांग्रेस की सत्ता डगमगा गयी।
अब बाबरी मिज्ज़द तो रहीं नहीं। वर्षों से राम लला तंबु में बिराजे हैं। मुस्लिम समुदाय ने नहीं, उनके रहनुमाओं ने ठान लिया है कि चाहे जो हो जाय, वहां राममंदिर नहीं बन सकता। दुर्भाग्य से भारत का मुस्लिम समुदाय नहीं चाहता है कि अयोध्या में राममंदिर नहीं बने, किन्तु उनके रहनुमाओं को इससे एतराज है, क्योंकि ऐसा हो गया तो उनकी सारी सियासत दांव पर लग जायेगी। दोनो समुदाय की गलतफहमियां दूर हो गयी और भार्इचार बढ़ गया, तो वे कहां जायेंगे ? रहनुमाओं ने हिन्दुओं के अपने ही देश में अपने आराध्य देव का मंदिर बनाने से भी वंचित कर रखा है। यह तुष्टीकरण राजनीति की पराकाष्ठा है।
बंगला देश के नागरिक द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त की धज्जियां उड़ाते हुए रोजी रोटी की तलाश में भारत में प्रवेश करते रहे। महानगरों में बड़ी-बड़ी अवैध बस्तियां बस गयी। बंगाल और आसाम में जन संख्या विस्फोट हो गया। असम में बहुसंख्यक अल्पसंख्यक बन गये हैं और बंगाल में बराबरी पर आने वाले हैं। बंगाल में पहले वामपंथी इनके रहनुमा बन कर इन्हे भारतीय नागरिक बनाने में पूरा सहयोग दिया, अब ममता दीदी के ये मजबूत वोट बैंक बन गय हैें। दीदी इनकी इतनी हमदर्द बन गयी है कि ये जो चाहे अपराध करें, दीदी इनके लिए झगड़ने के लिए बेताब रहती है। वामपंथियों और तृणमुल कांग्रेस की ही तर्ज पर कांगे्रस ने बंगलादेशियों का असम में भारतीय नागरिक बनाया है। मुस्लिम रहनुमाओं ने देश को कितना भारी नुकसान पहुंचाया है, यह इस उदाहरण से स्पष्ट है।
पच्चीस वर्ष पूर्व कश्मीरी पंड़ितो पर अमानुषिक अत्याचार कर उन्हें पूरखों की ज़मीन छोड़ने पर मजबूर कर दिया। आज भी ये अपने ही देश में शरणार्थी बने हुए है। इनके दर्द से किसी मुस्लिम रहनुमा का दिल नहीं पिघला। किसी की जबान से सहानुभूति का एक शब्द नहीं निकला, किन्तु बारह वर्ष पूर्व घटित हुए गुजरात दंगों को ले कर बराबर कोहराम मचाते रहे। पूरे विश्व में गुजरात के मुख्यमंत्री को बदनाम करने की कोर्इ कसर बाकी नहीं रखी। एक ही देश में दो समुदायों की तकलीफों को ले कर इतना भेद-भाव आपको दुनियां के किसी कोने में नहीं दिखार्इ देगा।
तुष्टीकरण ने भारतीय राजनीति की परिभाषा बदल दी। राजनीति में वे लोग शीर्ष पर पहुंचने लगे, जो निकृष्टम चारित्रिक विशेषताएं रखते हैं, किन्तु जिनके पास मुस्लिम वोटबैंक को अपने पक्ष में कर चुनाव जीतने की क्षमता हैं। फलत: राजनीति का स्तर गिरता गया। राजनेताओं का भ्रष्ट आचरण बढ़ता गया। देश के गलत हाथों में जाने से देश का विकास रुक गया। आधी से अधिक जनसंख्या गौर गरीबी में जीवन यापन करने लगी। मुस्लिम समुदाय के रहनुमाओं का भविष्य संवर गया, किन्तु भारत का भविष्य दांव पर लग गया।
वर्षों बाद भारतीय राजनीति में नरेन्द्र मोदी के उत्कर्ष ने सत्ता प्राप्ति के सारे समीकरण बदल दिये हैं। वे मुस्लिम रहनुमाओं की कलुषित राजीनति को रौंदते हुए शीर्ष पर पहुंचें है। तुष्टीकरण नहीं, सभी की संतुष्टी ही उनका मुख्य ध्यये है। एक का साथ दूसरें को धोखा की जगह वे सबका साथ, सबका विकास का नारा लगा रहे हैं। रहनुमा कर्इ तरह की भ्रांतियां फैला कर मुस्लिम समुदाय को उनसे दूर रखने का प्रयास कर रहे है। काश! भारतीय मुस्लिम उनके साथ हो जाय, तो भारत से तुष्टीकरण राजनीति की सदा के लिए विदार्इ हो जाय।
वर्षों तक मुस्लिम वोटबैंक के सहारे कांग्रेस सियासत करती रही और राजसुख भोगती रही, किन्तु जब हिन्दुओं ने एकजुट हो कर राजीवगांधी को ऐतिहासिक बहुमत दिया, तो उन्होंने हिन्दू वोटबैंक के लिए रामजन्म भूमि के ताले खुलवाये। यह बर्र के छज्जे पर फैंका गया पत्थर था, जिससे भारत की सियासी फिज़ा बदल दी । भाजपा ने अपना खोया जन आधार पुन: पाने के लिए रामजन्म भूमि आंदोलन छेड़ दिया। कांग्रेस के धोखे से तिलमिलाये मुस्लिम समुदाय को अपने पक्ष में करने के लिए कर्इ नये रहनुमा मैदान में उतर गये। रामजन्म भूमि विवाद का समयपूर्व हल निकल जाता, यदि रहनुमा मुस्लिम समुदाय को आवेशित और उतेजित नहीं करते। यदि ऐसा होता, तो बाबरी मज्जिद का विध्वंश नहीं होता। दाऊद गेंग को बम्बर्इ में बम विस्फोट करने का बहाना नहीं मिलता। गोधरा दुखान्तिका नहीं घटती, जिससे गुजरात नहीं झुलसता। किन्तु इस सारे गौरखधंधे से नये रहनुमाओं को बिहार और उत्तरप्रदेश में सत्ता सुख भोगने का अवसर मिल गया। दोनों प्रदेशों का मुस्लिम वोट बैंक खिसकने के बाद कांग्रेस की सत्ता डगमगा गयी।
अब बाबरी मिज्ज़द तो रहीं नहीं। वर्षों से राम लला तंबु में बिराजे हैं। मुस्लिम समुदाय ने नहीं, उनके रहनुमाओं ने ठान लिया है कि चाहे जो हो जाय, वहां राममंदिर नहीं बन सकता। दुर्भाग्य से भारत का मुस्लिम समुदाय नहीं चाहता है कि अयोध्या में राममंदिर नहीं बने, किन्तु उनके रहनुमाओं को इससे एतराज है, क्योंकि ऐसा हो गया तो उनकी सारी सियासत दांव पर लग जायेगी। दोनो समुदाय की गलतफहमियां दूर हो गयी और भार्इचार बढ़ गया, तो वे कहां जायेंगे ? रहनुमाओं ने हिन्दुओं के अपने ही देश में अपने आराध्य देव का मंदिर बनाने से भी वंचित कर रखा है। यह तुष्टीकरण राजनीति की पराकाष्ठा है।
बंगला देश के नागरिक द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त की धज्जियां उड़ाते हुए रोजी रोटी की तलाश में भारत में प्रवेश करते रहे। महानगरों में बड़ी-बड़ी अवैध बस्तियां बस गयी। बंगाल और आसाम में जन संख्या विस्फोट हो गया। असम में बहुसंख्यक अल्पसंख्यक बन गये हैं और बंगाल में बराबरी पर आने वाले हैं। बंगाल में पहले वामपंथी इनके रहनुमा बन कर इन्हे भारतीय नागरिक बनाने में पूरा सहयोग दिया, अब ममता दीदी के ये मजबूत वोट बैंक बन गय हैें। दीदी इनकी इतनी हमदर्द बन गयी है कि ये जो चाहे अपराध करें, दीदी इनके लिए झगड़ने के लिए बेताब रहती है। वामपंथियों और तृणमुल कांग्रेस की ही तर्ज पर कांगे्रस ने बंगलादेशियों का असम में भारतीय नागरिक बनाया है। मुस्लिम रहनुमाओं ने देश को कितना भारी नुकसान पहुंचाया है, यह इस उदाहरण से स्पष्ट है।
पच्चीस वर्ष पूर्व कश्मीरी पंड़ितो पर अमानुषिक अत्याचार कर उन्हें पूरखों की ज़मीन छोड़ने पर मजबूर कर दिया। आज भी ये अपने ही देश में शरणार्थी बने हुए है। इनके दर्द से किसी मुस्लिम रहनुमा का दिल नहीं पिघला। किसी की जबान से सहानुभूति का एक शब्द नहीं निकला, किन्तु बारह वर्ष पूर्व घटित हुए गुजरात दंगों को ले कर बराबर कोहराम मचाते रहे। पूरे विश्व में गुजरात के मुख्यमंत्री को बदनाम करने की कोर्इ कसर बाकी नहीं रखी। एक ही देश में दो समुदायों की तकलीफों को ले कर इतना भेद-भाव आपको दुनियां के किसी कोने में नहीं दिखार्इ देगा।
तुष्टीकरण ने भारतीय राजनीति की परिभाषा बदल दी। राजनीति में वे लोग शीर्ष पर पहुंचने लगे, जो निकृष्टम चारित्रिक विशेषताएं रखते हैं, किन्तु जिनके पास मुस्लिम वोटबैंक को अपने पक्ष में कर चुनाव जीतने की क्षमता हैं। फलत: राजनीति का स्तर गिरता गया। राजनेताओं का भ्रष्ट आचरण बढ़ता गया। देश के गलत हाथों में जाने से देश का विकास रुक गया। आधी से अधिक जनसंख्या गौर गरीबी में जीवन यापन करने लगी। मुस्लिम समुदाय के रहनुमाओं का भविष्य संवर गया, किन्तु भारत का भविष्य दांव पर लग गया।
वर्षों बाद भारतीय राजनीति में नरेन्द्र मोदी के उत्कर्ष ने सत्ता प्राप्ति के सारे समीकरण बदल दिये हैं। वे मुस्लिम रहनुमाओं की कलुषित राजीनति को रौंदते हुए शीर्ष पर पहुंचें है। तुष्टीकरण नहीं, सभी की संतुष्टी ही उनका मुख्य ध्यये है। एक का साथ दूसरें को धोखा की जगह वे सबका साथ, सबका विकास का नारा लगा रहे हैं। रहनुमा कर्इ तरह की भ्रांतियां फैला कर मुस्लिम समुदाय को उनसे दूर रखने का प्रयास कर रहे है। काश! भारतीय मुस्लिम उनके साथ हो जाय, तो भारत से तुष्टीकरण राजनीति की सदा के लिए विदार्इ हो जाय।