Sunday, 31 August 2014

अतिशय आत्ममुग्धता के रोग ने भाजपा को 2004 में सत्ता से बाहर किया और इसी बीमारी ने 2009 में पुनः सत्तारुढ होने की आशा पर तुषारापात कर दिया। नरेन्द्र मोदी ने कठोर परिश्रम के बलबूते भाजपा को अपने बल पर सत्ता में आने का ऐहिहासिक मौका दिया है, जिसका पूरा श्रेय उन्हें ही जाता है। यदि इतना ही परिश्रम भाजपा के दर्जन भर शीर्ष नेता 2004 और 2009 में करते, तो भारत की जनता को दस वर्षों तक एक अकर्मण्य और भ्रष्ट सरकार का भार नहीं ढोना पड़ता। देश की प्रगति अवरुद्ध नहीं होतीं। कांग्रेस ने देश को जिस दयनीय स्थिति में छोड़ा है, उसकी जिम्मेदारी भाजपा नेताओं की आत्ममुग्धता और बैठे बिठाये ही सफलता हांसिल करने का गरुर है।
यदि भाजपा ऐतिहासिक जीत की खुमारी में नहीं डूबी होती, तो उतराखंड में उसकी सरकार बन जाती। नीतीश-लालू की अवसरवादी जोड़ी बनते ही टूट जाती। कर्नाटक के मुख्यमंत्री को जीवनदान नहीं मिलता। मीडिया को यह कहने का मौका नहीं मिलता कि मोदी की लोकप्रियता को अब ग्रहण लग गया है। मोदी के अच्छे दिन एक दुःस्वपन बन कर रह गये हैं। जिन राजनीतिक दलों को लोकसभा चुनावों में अपमानजनक पराजय झेलनी पड़ी है, उनके चेहरे पर नूर नहीं लौटता। महा गठबंधन बना कर भाजपा को रोकने की रणनीति पर मंथन नहीं करते।
यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि देश को वर्षों बाद एक ऐसा प्रधानमंत्री मिला है, जिसके मन में देश के लिए कुछ कर गुजरने की तड़फ है। वे अथक परिश्रम से देश की दुर्दशा को सुधारने के लिए भरसक प्रयास कर रहे हैं। उनके पास अपना एक विशिष्ट विज़न है। नयी नीतियां और योजनाओं को लागू करने की दृढ़ इच्छा शक्ति है। मोदी का व्यक्तित्व इतना विराट हो गया है कि उनके द्वारा उठाये गये हर नये कदम और उनके निर्णय को अब गम्भीरता से लिया जाता है। बुद्धिजीवी उसकी गहन समीक्षा करते हैं।
देश अव्यवहारिक और बोझिल कानूनों और नीतियों की त्रासदी भोग रहा है। प्रशासनिक व्यवस्था लच्चर, अकर्मण्य और भ्रश्टाचार में आकंठ डूबी है। राजनेता, नौकरशाह, उद्योगपतियों और सरकारी कर्मचारियों के लिए यह देश स्वर्ग बना हुआ है, वहीं अस्सीं प्रतिशत जनता नारकीय जीवन जी रही है। हर घर की अपनी समस्याएं हैं। अपनी दुखभरी व्यथा है। गरीबी और अभावों की पीड़ा हैं। सतसठ वर्ष की बर्बादी को दुरुस्त करना है, किन्तु समय बहुत कम हैं। पांच वर्ष की अवधि भी एक सरकार के लिए कम हैं, किन्तु मोदी ने जनता के मन में इतनी आशाएं जगा दी है कि उसे आज अच्छें दिन चाहियें, जबकि ऐसा कुछ दिनों और कुछ महीनों में नामुमकिन है।
यह सही है कि मोदी जो कुछ कर रहे हैं, वे देश की जनता के लिए ही कर रहे हैं, किन्तु जनता को उनके कार्यों को समझने की क्षमता नहीं है। पीडि़त जनमानस कष्ट सहता हुआ भीतर से इतना टूट चुका हैं कि यदि उसे तुरन्त सुखद परिणाम नहीं मिलें तो वह सरकार विरोधियों की इन बातों में आ जायेगा कि उन्हें छला गया है। मजबूरी का फायदा उठा कर उन्हें झूठे सपने दिखायें गये हैं। अच्छे दिन लाने का वादा मात्र नारा हैं, जिसे राजनीतिक ठगी कहा जा सकता है।
मोदी सरकार का अब तक का काम संतोषप्रद माना जा रहा है, किन्तु महंगाई और भ्रष्टाचार दोनों ही मार्चों पर अपेक्षित सफलता नहीं मिलने पर सरकार विरोधी राजनीतिक दल सरकार को कठघरें में खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं। यदि नयी सरकार स्तारुढ़ होते हीे देशभर में फैली हुई काले धन की अथाह सम्पति के साम्राज्य पर वज्रपात करती, तो उसकी विश्वसनीयता और लोकप्रियता बढ़ जाती। उसे सिर्फ पिछले दस वर्षों में शहरी जमीन या प्रोपर्टी की खरीद फरोख्त में लगे हुए लोगों की जानकारी जुटानी थी, जो सरकारी रिकार्ड खंगालने पर आसानी से उपलबध हो जाती। अब तक अरबो रुपयों की अघोषित सम्पति का पत्ता लग जाता। यदि सरकार ज्यादा गहराई में उतरती तो केई चेहरे बेनकाब हो जाते। पूरे देश में हड़कम्प मच जाता। अच्छे दिन लाने के वादे का जो इन दिनों मज़ाक उड़ा रहे हैं, उनकेे मुहं पर ताले जड़ जाते, क्योंकि जो लपेटे में आते उनमे से कई एक उनके अपने ही होते।
जेटलीे जी ने चिदम्बर की नौकरशाही से जो बजट बनवाया, उसमें पिछली सरकार की अलोकप्रिय नीतियों की छाप थी। डिजल पर सब्सिड़ी घटा रहे हैं, तो उस पर केन्द्र और राज्य सरकारों के टेक्स लगे हुए हैं, वे भी तो कम किये जा सकते थे। यदि डिजल सस्ता होता, तो महंगाई घट जाती और आम जन को लगता कि वास्तव में मोदी जी के आते ही अच्छे दिन आने की शुरुआत हो गयी है। इसी तरह चिदम्बर की स्वर्ण आयात की नीति भी दोषपूर्ण है, जिसकी समीक्षा किये बिना ही उसे ज्यों का त्यों लागू रहने देना एक गलत निर्णय था।
मनरेगा और खाद्यसुरक्षा योजनाएं भ्रष्टाचार की खाने हैं। इन योजनाओं से वंचित समाज से ज्यादा बिचोलिये मालामाल हुए हैं। इन दोनों योजनाओं की पुनः समीक्षा करने तक रोक लगायी जा सकती थी। ऐसा होने पर सरकारी खजाने का घाटा कम हो जाता और महंगाई पर यकायक विराम लग जाता। केरोसिन पर सब्सिडी का लाभ मात्र दस प्रतिशत परिवारों को मिलता है, नब्बे प्रतिशत केरोसिन ब्लेक में बिकता है, जिसका पूरे देश में डिजल में मिलावट के लिए उपयोग किया जा रहा है। वंचित परिवारों को न्यूनतम दरों पर कैरोसिन दिलाने की नीति में बदलाव लाना चाहिये।
भाजपा के लिए अपने बलबूते सरकार बनाना संतोष और गर्व की बात हो सकती है, किन्तु जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरना और अपने कार्यों से जनता का दिल जीतना भी आवश्यक है। मोदी दिन रात देश के लिए काम कर रहे हैं, किन्तु पार्टी यदि आत्ममुग्धता की खुमारी में डूबी रहेगी और जनता से जुड़ कर उसकी नब्ज टटोलने का प्रयास नहीं करेगी, तो सरकार द्वारा किये जा रहे कार्यों का अपेक्षित परिणाम दिखाई नहीं देंगे। यदि पार्टी कायकर्ताओं से फिड बेक ले कर भाजपा नेता सरकार को समय पर सही परामर्श देते, तो महंगाई पर काबू पाने के लिए सरकार ठोस कदम उठा सकती थी।
खैर, अभी पानी सिर से ऊपर से नहीं निकला है। उपचुनाव में विधानसभा की कुछ सीटे हारने से केन्द्र सरकार की नाकायाबी नहीं माना जसकता, किन्तु इसे खतरे की घंटी अवश्य कहा जा सकत है। यह तो समझ आ रहा है कि भाजपा नेता उपचुनावों के दौरान जनता को सही ढंग से अपनी बात नहीं समझा सकें या उन्होंने चुनाव जीतने के लिए परिश्रम ही नही किया। वे यह मान कर बैठ गये कि विपक्ष की हालत बहुत खराब हैं। हम मोदी लोकप्रियता की लहर पर बैंठे हैं, जिसके सहारे आसानी से वैतरणी पार कर लेंगे।
भाजपा नेताओं को इस हकीकत को स्वीकार कर लेना चाहिये कि विपक्ष कमज़ोर हुआ है, समाप्त नहीं हुआ है। पार्टी यदि आत्ममुग्धता को छोड़ कर जनता के साथ खड़ी होगी और उसकी तकलीफो से सरकार को अवगत कराती रहेगी, तो मोदी सरकार के लिए अगले पांच साल और बढ़ा देगी, अन्यथा पांच साल के बाद ही पार्टी को फिर सता बनवास भोगना पड़ेगा, जो भारत की जनता के लिए एक दुर्भाग्यजनक स्थिति होगी, क्योंकि वर्तमान सरकार यदि दस वर्षो तक पूर्ण मनायोग और प्रतिबद्धता से काम करती रहेगी, तभी एक समृद्ध, खुशहाल और विकसित भारत का सपना साकार हो पायेगा, अन्यथा फिर उन्ही ठगों और लुटेरों को देश सौंपा जा सकता हैं, जो देश को बदहाल स्थिति में छोड़ कर गये हैं।

Tuesday, 12 August 2014

जख्मी कांग्रेस पार्टी पर तरस खा कर पहले इसका इलाज करवाईये, राहुल जी !

2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस गम्भीर रुप से दुर्घटनाग्रस्त हुई है। वह घायल अवस्था में सड़क पर पड़ी है। उसके शरीर से खून रिस रहा है। वह कराह रही है, किन्तु आप उसे अस्पताल में ले जा कर इलाज कराने के बजाय बदहवाश हो, चीख-चीख कर अपने प्रतिद्वंद्वी को कोस रहे हैं। उनकी गलतियां ढंूढ़ रहे हैं। आपकी मनःस्थिति उस मानसिक रोगी की तरह हो गयी है, जो समझ नहीं पा रहा है कि आपात स्थिति में क्या किया जाता है ? यदि आपका यही रवैया रहा, तो आपकी पार्टी तड़फ-तड़फ कर दम तोड़ देगी। जब पार्टी ही नहीं रहेगी, तोे आप किसके सहारे राजनीति करेंगे ? तब आपके प्रतिद्वंद्वी का  कांग्रेस  मुक्त भारत का सपना साकार हो जायेगा। अतः सब से पहले अपनी मरणासन्न पार्टी का जीवन बचाने के उपाय सोचिये। उसे गहन चिकित्सा के लिए चिकित्सालय भर्ती कराईये। उसके जख्म इतने गहरे हैं कि चार-पांच वर्ष तक वह अपने पावों पर खड़ी हो कर चलने की शक्ति ही नहीं जुटा पायेगीं। किन्तु इस सच्चाई से बेखबर हो, आप इन दिनों ऊलजुलूल हरकते रहें हैं। इससे तो यही समझा जायेगा कि आप राजनीति के नौसिखिये खिलाड़ी है और प्रतिकूल परिस्थितियों में संधर्ष करने की क्षमता आपके पास नहीं हैं। आखिर कब तक एक राजनीतिक परिवार का वंशज होने के कारण पार्टी आपका भार ढोती रहेगी।
राहुल जी ! सच को सच कहने और झूठ को झूठ कहने की आदत डालिये। इस भ्रम में मत रहिये कि बार-बार किसी झूठ को दोहराने से वह सच बन जायेगा। प्रतिकूल परिस्थितियों में आपको केजरीवाल शैली में राजनीति करने की क्या जरुरत आ पड़ी है ? क्या कांग्रेस के इतिहास में कोई ऐसा नेता नहीं हुआ, जिसे आप आदर्श मान सके ? राजनीति में नये-नये पैदा हुए मौसमी नेताओं का न तो कोई भूत था, न कोई भविष्य दिखाई दे रहा है। केजरीवाल ने झूठ और प्रपोगंड़ा के सहारे अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश की उसका जो हश्र हुआ, यह किसी से छुपा हुआ नही है। क्या आप भी कांग्रेस को केजरीवाल की तरह बिल्कुल ही मिटाने पर आमदा है ?
उत्तरप्रदेश के घटनाक्रम के सच को आप क्यों नहीं स्वीकार कर पा रहे हैं ? क्या यह सच नहीं है कि वहां गुंड़ो की दबंगई बढ़ गयी है ? क्या यह सच नहीं है कि प्रदेश सरकार और पुलिस उन गुंड़ो पर नियंत्रण नहीं कर पा रही है ? बलात्कार और स्त्री प्रताड़ना के न थमने वाले सिलसिले के आखिर कौन गुनहगार है, इस सच को क्या आप नहीं जानते हैं ? क्या आपको मालूम नहीं है कि मुजफ्फरनगर में आग किसने लगायी ? किसने सहारनपुर के सिखों कीे दुकाने जलायी ? पूरा का पूरा बाजार जला कर खाक कर दिया। सिख परिवारों के जीवन भर की कमाई को सुनियोजित तरीके उजाड़ दिया। उन सिखों के आंसू पौंछने आप नहीं जा सके, किन्तु प्रशासन के निरंकुश और पक्षपात पूर्ण रवैये के संबंध में निंदा के दो शब्द बोलने के लिए आपकी जबान क्यों लड़खड़ा रही है ? राहुल जी, सहारनपुर में जो कुछ हुआ वह साम्प्रदायिक दंगा नहीं था, एक समुदाय पर आक्रमण था, जिसे प्रदेश सरकार रोकने में अक्षम रहीं। एक राज्य सरकार यदि इस तरह की हरकतों को नहीं रोक पाती है, उसे शासन करने का कोई नैतिक और संवैधानिक अधिकार नहीं है ? क्या ऐसी सरकार की बर्खास्तगी की मांग करने का साहस आप जुटा सकते हैं ?
किस अज्ञानी सलाहकार ने आपको सलाह दी है कि देश भर में साम्प्रदायिक दंगे हो रहे हैं, इसलिए इस पर लोकसभा में चर्चा कराईये। उत्तरप्रदेश के अलावा पूरा देश शांत है। विशेषरुप से वे प्रदेश जहां भाजपा का शासन है। दोनों सम्प्रदायों में भाईचार बढ़ा है। आपसी विश्वास बढ़ा है। आप चाहे जितना झूठ बोलिये और लोकसभा में साम्प्रदायिकता पर चर्चा कराईये, भारतीय मुसलमान आपके झांसे में आने वाले नहीं हैं, क्योंकि वे अब आपकी पार्टी की नीयत को समझ गये हैं। वे यह भी जानते हैं कि साठ वर्ष के शासन काल में कांग्रेस ने उनसे वोट लिए पर बदले में गरीबी और बदहाली बांटी। गरीबी के कारण मुसलमान अपने बच्चों को सही तामिल नहीं दे पाते, जिससे वे रोजगार पाने में पिछड़ जाते हैं। यदि आप वास्तव में मुस्लिम समुदाय के शुभचिंतक है, तो साम्प्रदायिक दंगो जैसे विषय पर चर्चा के बजाय उनकी बदहाली ओर पिछड़ेपन दूर करने के उपाय करने जैसी सार्थक बहस को तवज्जों दें। अब एक प्रगतिशील और जागरुक समाज का निमार्ण की वकालात कीजिये। वैसे भी यदि भारत में मुलायमसिंह जैसे नेताओं की घृणित राजनीति समाप्त हो गयी, तो मान लीजिये कि कहीं दंगे नहीं होंगे।
इस सच को भी स्वीकार कर लीजिये कि उत्तरप्रदेश में दंगे नहीं हो रहे है, एक राजनीतिक दल द्वारा दंगे करवाये जा रहे हैं। इन दंगों में न हिन्दू शामिल है, न मुसलमान । इन दंगों में देशद्रोही तत्व व एक समुदाय और जाति विशेष के वे गुंड़े शामिल हैं, जिन्हें एक राजनीतिक दल ने पाल रखा है। इस राजनीतिक दल को प्रदेश की जनता ने लोकसभा चुनावों में पूरी तरह ठुकरा दिया है, फिर भी वे अपनी हरकतों पर बाज नहीं आ रहे हैं। अतः आप वास्तव में बीस करोड़ जनसंखया वाले प्रदेश की दुर्दशा को देख दुबले हो रहे हैं, तो सबसे पहले अखिलेश यादव की निकम्मी सरकार की कारगुजारियों के बारें में लोकसभा में चर्चा कराईये।
वर्तमान सरकार को जनता ने पांच साल काम करने के लिए दिये हैं। आपको न तो जनता ने सरकार बनाने और न ही उसे गिराने के लायक छोड़ा है। यदि सरकार अक्षम रहती है, तो जनता उसे सत्ता छीन लेगी, किन्तु आप यह खुशफहमी क्यों पाल रहे हैं कि सरकार के प्रत्येक काम और निर्णय का विरोध करने से सरकार गिर जायेगीं ? बिना किसी ठोस आधार के बेतुके और निरर्थक मुद्धों को तवज्जों दे कर लोकसभा में हुड़दंग करा कर आप पाना क्या चाहते हैं ? ऐसा करने से प्रशंसा के नहीं अपयश के पात्र होंगे। अतः इस हक़ीकत को स्वीकार कर लीजिये कि लोकसभा में आपके सेक्युलर सहयोगियों की संख्या नगन्य हो गयी है। अतः सेक्युलिरिजम और कम्युनिलिजम का राग अलापना छोड़ दीजिये। इस कर्कश राग को गाते रहने के कारण ही जनता ने आपकी ऐसी दयनीय हालत की है। भविष्य में चुनाव जनता की भलाई के काम करके ही जीते जायेंगे। वोट बैंक और तुष्टीकरण के सारे फार्मुले इस बार फैल हो गये हैं, अतः इन व्यर्थ हो गये फार्मुलों को छोड़ कर कोई अन्य उपाय सोचिये।
आपके परिवार ने इस देश की जनता के साथ बहुत दगाबाजी की है। देश की दुर्दषा का शतप्रतिशत दोषी आपका परिवार ही है। इस परिवार की पहाड़ जैसी गलतियों को क्षमा कर जनता ने बार-बार भरोसा किया, पर हर बार धोखा खाया। इसकी वजह यह थी कि भारतीय जनता के पास कोई विकल्प नहीं था। परन्तु अब जनता को विकल्प मिल गया है। भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में कांग्रेस के अलावा पहली बार किसी पार्टी ने अपने बलबूते पर सरकार बनायी है। आपके परिवार और कांग्रेस पार्टी को साठ वर्ष दिये, अब दूसरी पार्टी को साठ महीने काम करने दीजियें। तब तक आप अपना पूरा ध्यान पार्टी की सेहत सुधारने में लगाईये। इसके लिए आपको भारत के गांवों और शहरों की खाक छाननी होगी। लोगो से जनसम्पर्क बढ़ाना होगा। जनता के दुख-सुख में साझीदार होना होगा। साठ महीने तक यदि आप कठोर तपस्या करेंगे, तभी आपकी पार्टी को जीवनदान मिलेगा, अन्यथा पार्टी दम तोड़ देगी। क्या आप चाहते हैं कि एक एतिहासिक पार्टी भारत की राजनीति में अप्रासंगिक हो कर हांसियें पर धकेल दी जाय ? यदि नहीं चाहते हैं, तो अपना रवैया सुधारिये। आप इन दिनों जो कुछ कर रहे हैं, वह ना समझी है, बचकाना पागलपन है, जो देश और पार्टी दोेनों के हित में नहीं है।