उतराखंड़ की तीनों विधानसभा जीतने पर मृत कांग्रेस को संजीवनी मिल गयी।
ऐसा लगा जैसे कृश्काय कांगे्रस लड़खड़ाते हुए खड़ी हो गयी। कांग्रेसियों
के मुरझाये चेहरे यकायक खिल उठे। वे क्षीण आवाज़ में चीख उठे -”मोदी जी के
अच्छे दिन अब कभी नहीं आ सकते। हमारे अच्छे दिन आयेगे। हमारी मेड़म जल्दी
ही देश की सर्वेसर्वा बनेगी।” वैसे यह उनका ख्याली पुलाव हैं। खैर, अभी न
नौ मन तेल जलेगा और न राधा नाचेगी, किन्तु मोदी सरकार के चुनाव परिणामों को
चुनौती मान कर अपने कार्यों, नीतियों और फैंसलों से जनता का विश्वास जीतने
की कोशिश प्रारम्भ कर देनी चाहिये।
यह माना जा सकता है कि मोदी सरकार अच्छा काम कर रही है। देश के विकास और समृद्धि के जो वादे किये थे, उसे पूरा करने के लिए परिश्रम कर रही है। यह भी सच है कि मोदी सरकार को शांति से काम करने दिया गया, तो देश के अच्छे दिन भी आयेंगे, किन्तु जनता के सब्र का बांध फूट रहा है। उसे अपनी सरकार से बहुत अधिक अपेक्षाएं हैं। केन्द्र में सरकार बन गयी है, उसके परिणाम उसे आज चाहिये, एक वर्ष बाद नहीं, क्योंकि भूख आज लग रही है और आप चार दिन बाद अच्छे व्यंजन बना कर खिलाओंगे, तो व्यंजन थाली में आने के पहले ही भूखा व्यक्ति भूख से दम तोड़ देगा।
केन्द्र में सरकार बदलते ही दालों के भाव यकायक बीस प्रतिशत कम हो गये थे। दूसरे जींसों के भाव भी लुढ़कने लगे थे। व्यापारियों मे सरकार को ले कर अनचाहा भय व्याप्त हो गया था, किन्तु सरकार बनते ही ऐसी कोई कार्यवाही नहीं हुई, जिससे वह भय स्थायी रह पाता। जून माह में मानसून की बेरुखी और इराक संकट को मीडिया द्वारा बढ़ा चढ़ा कर दिखाने से महंगाई फिर बढ़ने लगी। प्रधानमत्री ने मंत्रियों के साथ महंगाई का ले कर कई मीटिंगे की और जमाखोरों को धमकाया, किन्तु परिणाम सिफर ही रहा। क्योंकि व्यपारिपयों ने भांप लिया कि यह सरकार भी नौकरशाही का सहारा ले कर ही चल रही है। नौकरशाही की अकर्मण्यता और भ्रष्टाचार जगजाहिर हैं, जिसका व्यापारियों को कोई भय नहीं है।
बूलेट ट्रेन और स्मार्टसीटी जैसे सपने दिखाने के पहले महंगाई पर अंकुश लगाना आवश्यक था। देश भर के कालाबाजारियों की धड़ पकड़ के लिए अफसरों पर आश्रित रहने के बजाय स्थानीय जनता से सहयोग लेना था। जमाखारी रोकने का काम अपने सांसदों और विधायकों को सौंपा जा सकता था। प्रशासनिक व्यवस्था पूरी तरह जंग खा चुकी है, जिससे बेहतर परिणामों की उम्मीद तब तक नहीं की जा सकती, जब तक इसके विरुद्ध सख्त कार्यवाही नहीं की जाय। उसे यह अहसास नहीं कराया जाय कि अब वह सब नहीं चलेगा, जो वर्षों से चल रहा है।
विदेशों से कालाधन लाने के लिए तो सरकार बनते ही कार्यवाही आरम्भ कर दी, परन्तु पूरे देश में काले धन का जो साम्राज्य दिखाई देखा रहा है, उस पर प्रहार करने के लिए अब तक कोई पहल नही की। भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों, राजनेताओं और व्यापारियों ने अपनी अधिकांश काली कमाई प्रोपर्टी में उलझा रखी है। सरकार कोशिश कर साठ दिन में भ्रष्ट- सरोवर के साठ मगरमच्छ ही पकड लेती, तो टीवी चेनलों को टीआरपी बढ़ाने के लिए मसाला मिल जाता और वे अपने सघन प्रचार प्रपोगंड़ा से टमाटर के भाव बढ़ाने में अप्रत्यक्ष सहयोग नहीं देते।
सरकार बदलने के बाद भी पूरे देश में भ्रष्टाचार बदश्तूर जारी है। वे प्रदेश भी अछूते नहीं हैं, जहां भाजपा की अपनी सरकारें हैं। महंगाई के साथ-साथ भ्रष्टाचार को रोकने के लिए भी सरकार के बनते ही पहल की जाती, तो जनता में अच्छा संदेश जाता। सरकार की संकल्प शक्ति से भ्रष्ट सरकारी व्यवस्था सुधारी जा सकती है। यह कोई असम्भव कार्य नही है। केन्द्र व प्रदेशा की सरकारे ठान लें तो भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों का आचरण एक हद तक सुधारा जा सकता है।
जेटली जी ने चिदम्बर की नौकरशाही से ही बजट तैयार करवाया, जिसमें मोदी जी के सपनों को जोड़ दिया। अल्पअवधि में तैयार किये गये बजट से कुछ ज्यादा आशा नहीं की जा सकती, किन्तु बजट में महंगाई पर अंकुश लगाने की गम्भीर कोशिश नहीं की गयी। डिजल और पैट्रोल पर लगा हुआ टेक्स भार कम कर देते तो, महागाई स्वतः ही कम हो जाती । बार-बर सब्सिडी का रोना रोया जाता है, किन्तु इन पदार्थों पर लगाये गये टेक्स का विवरण जनता को नहीं दिया जाता।
पिछली सरकार की खैरात योजनाएं दरअसल खर्चिली योजनाएं हैं जिससे जनता को लाभ के बजाय हानि ज्यादा हो रही है। बजट के कई लाख करोड़ रुपये इन योजनाओं के भेंट चढ़ जाते है, जिसका आधा पैसा भ्रष्टाचारी चट कर जाते हैं। मनरेगा में क्या हो रहा है, इसकी यदि जांच करायी जाय, तो कई चैंकाने वाले तथ्य सामने आयेंगे। इस योजना से ग्रामिण परिवारों के पास जो पैसा गया, उससे अधिक पैसा भ्रश्टाचारियों ने लूट खाया। इसी तरह वोट बटोरने के लिए ताबड़तोड़ में लागू की गयी खा़द्य सुरक्षा योजना में कई खामियां है, जिसका लाभ भूखे लोगों से ज्यादा वे उठा रहे हैं, जिनका पेट भरा हुआ है। आधे से अधिक बीपीएल कार्ड फर्जी बने हुए हैं। हालत यह है कि एक किसान गेहूं पैदा कर बीस रुपया किलों बाजार में बेच रहा है वही किसान दो रुपये किलों में सरकार से गेहूं खरीद रहा है। कई लाख करोड़ की मीड डे मिल योजना को यदि बंद भी कर दिया जाय, तो सरकार के इस निर्णय की कोई आलोचना नहीं करेगा, क्योंकि अधिकांश स्कूलाी बच्चें सरकार द्वारा खिलाया जा रहा खाना नहीं खा रहे हैं।
मोदी जी का यह विचार सही है कि गरीबों का हक नहीं छीना जाना चाहिये, किन्तु गरीबों और वंचितो तक पहुचांयी जा रही सहायता को बीच में लुटा जा रहा है, उस लूट को तो रोका जाना चाहिये। पिछली सरकार ने जो गलतियां की उसे अक्षरशः लागू करना बुद्धिमानी नहीं है। महंगाई बढ़ाने में खैरात योजनाएं भी एक महत्वपूर्ण कारक है। अब भी इन सारी योजनाओं की समीक्षा की जा सकती है। जब तक इनमें सुधार नहीं लाया जाय तब तक इन्हें रोक कर भारी धन राशि बचायी जा सकती है।
ब्यूरौक्रेसी पर सारा काम छोड़ कर निश्चिंत हो जाना, एक लोकप्रिय सरकार के लिए शोभा नहीं देता, क्योंकि महंगाई का जो आज रौद्र रुप दिखाई दे रहा है, उसका मूल कारण पिछली सरकार के घपले-घोटालें और ब्यूरोक्रेसी की संदिग्ध भूमिका रही है। जिन लोगों ने जनता के धन को जम कर लूटा और राजकोषीय घाटा बढ़ा कर महंगाई बढ़ाई है, वे लोग सरकार से हट गये, किन्तु उनके सहयोगी नयी सरकार के साथ अब भी जुड़े हुए हैं, जिनकी नीति और नीयत को सुधारे बिना देश की ज्वलन्त समस्याओं को नहीं सुलझाा जा सकता।
कुशासन, महंगाई, भ्रष्टाचार, कालाधन और महिला उत्पीड़न के विरुद्ध प्रभावी प्रचार अभियान से अभिभूत हो कर पूरे देश की जनता ने नरेन्द्र मोदी के पक्ष में ऐतिहासिक मतदान किया है। अतः सरकार को शीध्रता से उन समस्याओं को सुलझाने में देरी नहीं करनी चाहिये, जिससे जनता आज प्रभावित हो रही है। जनता को वह नेतृत्व कभी नहीं चाहिये, जिसे उसने ठुकरा दिया है, किन्तु ऐसी परिस्थितियां नहीं पैदा होनी चाहिये, जिससे जनता को हताश हो कर फिर उन्हीं घोटालाबाजों और भ्रष्टाचारियों की की शरण में जाना पड़े।
यह माना जा सकता है कि मोदी सरकार अच्छा काम कर रही है। देश के विकास और समृद्धि के जो वादे किये थे, उसे पूरा करने के लिए परिश्रम कर रही है। यह भी सच है कि मोदी सरकार को शांति से काम करने दिया गया, तो देश के अच्छे दिन भी आयेंगे, किन्तु जनता के सब्र का बांध फूट रहा है। उसे अपनी सरकार से बहुत अधिक अपेक्षाएं हैं। केन्द्र में सरकार बन गयी है, उसके परिणाम उसे आज चाहिये, एक वर्ष बाद नहीं, क्योंकि भूख आज लग रही है और आप चार दिन बाद अच्छे व्यंजन बना कर खिलाओंगे, तो व्यंजन थाली में आने के पहले ही भूखा व्यक्ति भूख से दम तोड़ देगा।
केन्द्र में सरकार बदलते ही दालों के भाव यकायक बीस प्रतिशत कम हो गये थे। दूसरे जींसों के भाव भी लुढ़कने लगे थे। व्यापारियों मे सरकार को ले कर अनचाहा भय व्याप्त हो गया था, किन्तु सरकार बनते ही ऐसी कोई कार्यवाही नहीं हुई, जिससे वह भय स्थायी रह पाता। जून माह में मानसून की बेरुखी और इराक संकट को मीडिया द्वारा बढ़ा चढ़ा कर दिखाने से महंगाई फिर बढ़ने लगी। प्रधानमत्री ने मंत्रियों के साथ महंगाई का ले कर कई मीटिंगे की और जमाखोरों को धमकाया, किन्तु परिणाम सिफर ही रहा। क्योंकि व्यपारिपयों ने भांप लिया कि यह सरकार भी नौकरशाही का सहारा ले कर ही चल रही है। नौकरशाही की अकर्मण्यता और भ्रष्टाचार जगजाहिर हैं, जिसका व्यापारियों को कोई भय नहीं है।
बूलेट ट्रेन और स्मार्टसीटी जैसे सपने दिखाने के पहले महंगाई पर अंकुश लगाना आवश्यक था। देश भर के कालाबाजारियों की धड़ पकड़ के लिए अफसरों पर आश्रित रहने के बजाय स्थानीय जनता से सहयोग लेना था। जमाखारी रोकने का काम अपने सांसदों और विधायकों को सौंपा जा सकता था। प्रशासनिक व्यवस्था पूरी तरह जंग खा चुकी है, जिससे बेहतर परिणामों की उम्मीद तब तक नहीं की जा सकती, जब तक इसके विरुद्ध सख्त कार्यवाही नहीं की जाय। उसे यह अहसास नहीं कराया जाय कि अब वह सब नहीं चलेगा, जो वर्षों से चल रहा है।
विदेशों से कालाधन लाने के लिए तो सरकार बनते ही कार्यवाही आरम्भ कर दी, परन्तु पूरे देश में काले धन का जो साम्राज्य दिखाई देखा रहा है, उस पर प्रहार करने के लिए अब तक कोई पहल नही की। भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों, राजनेताओं और व्यापारियों ने अपनी अधिकांश काली कमाई प्रोपर्टी में उलझा रखी है। सरकार कोशिश कर साठ दिन में भ्रष्ट- सरोवर के साठ मगरमच्छ ही पकड लेती, तो टीवी चेनलों को टीआरपी बढ़ाने के लिए मसाला मिल जाता और वे अपने सघन प्रचार प्रपोगंड़ा से टमाटर के भाव बढ़ाने में अप्रत्यक्ष सहयोग नहीं देते।
सरकार बदलने के बाद भी पूरे देश में भ्रष्टाचार बदश्तूर जारी है। वे प्रदेश भी अछूते नहीं हैं, जहां भाजपा की अपनी सरकारें हैं। महंगाई के साथ-साथ भ्रष्टाचार को रोकने के लिए भी सरकार के बनते ही पहल की जाती, तो जनता में अच्छा संदेश जाता। सरकार की संकल्प शक्ति से भ्रष्ट सरकारी व्यवस्था सुधारी जा सकती है। यह कोई असम्भव कार्य नही है। केन्द्र व प्रदेशा की सरकारे ठान लें तो भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों का आचरण एक हद तक सुधारा जा सकता है।
जेटली जी ने चिदम्बर की नौकरशाही से ही बजट तैयार करवाया, जिसमें मोदी जी के सपनों को जोड़ दिया। अल्पअवधि में तैयार किये गये बजट से कुछ ज्यादा आशा नहीं की जा सकती, किन्तु बजट में महंगाई पर अंकुश लगाने की गम्भीर कोशिश नहीं की गयी। डिजल और पैट्रोल पर लगा हुआ टेक्स भार कम कर देते तो, महागाई स्वतः ही कम हो जाती । बार-बर सब्सिडी का रोना रोया जाता है, किन्तु इन पदार्थों पर लगाये गये टेक्स का विवरण जनता को नहीं दिया जाता।
पिछली सरकार की खैरात योजनाएं दरअसल खर्चिली योजनाएं हैं जिससे जनता को लाभ के बजाय हानि ज्यादा हो रही है। बजट के कई लाख करोड़ रुपये इन योजनाओं के भेंट चढ़ जाते है, जिसका आधा पैसा भ्रष्टाचारी चट कर जाते हैं। मनरेगा में क्या हो रहा है, इसकी यदि जांच करायी जाय, तो कई चैंकाने वाले तथ्य सामने आयेंगे। इस योजना से ग्रामिण परिवारों के पास जो पैसा गया, उससे अधिक पैसा भ्रश्टाचारियों ने लूट खाया। इसी तरह वोट बटोरने के लिए ताबड़तोड़ में लागू की गयी खा़द्य सुरक्षा योजना में कई खामियां है, जिसका लाभ भूखे लोगों से ज्यादा वे उठा रहे हैं, जिनका पेट भरा हुआ है। आधे से अधिक बीपीएल कार्ड फर्जी बने हुए हैं। हालत यह है कि एक किसान गेहूं पैदा कर बीस रुपया किलों बाजार में बेच रहा है वही किसान दो रुपये किलों में सरकार से गेहूं खरीद रहा है। कई लाख करोड़ की मीड डे मिल योजना को यदि बंद भी कर दिया जाय, तो सरकार के इस निर्णय की कोई आलोचना नहीं करेगा, क्योंकि अधिकांश स्कूलाी बच्चें सरकार द्वारा खिलाया जा रहा खाना नहीं खा रहे हैं।
मोदी जी का यह विचार सही है कि गरीबों का हक नहीं छीना जाना चाहिये, किन्तु गरीबों और वंचितो तक पहुचांयी जा रही सहायता को बीच में लुटा जा रहा है, उस लूट को तो रोका जाना चाहिये। पिछली सरकार ने जो गलतियां की उसे अक्षरशः लागू करना बुद्धिमानी नहीं है। महंगाई बढ़ाने में खैरात योजनाएं भी एक महत्वपूर्ण कारक है। अब भी इन सारी योजनाओं की समीक्षा की जा सकती है। जब तक इनमें सुधार नहीं लाया जाय तब तक इन्हें रोक कर भारी धन राशि बचायी जा सकती है।
ब्यूरौक्रेसी पर सारा काम छोड़ कर निश्चिंत हो जाना, एक लोकप्रिय सरकार के लिए शोभा नहीं देता, क्योंकि महंगाई का जो आज रौद्र रुप दिखाई दे रहा है, उसका मूल कारण पिछली सरकार के घपले-घोटालें और ब्यूरोक्रेसी की संदिग्ध भूमिका रही है। जिन लोगों ने जनता के धन को जम कर लूटा और राजकोषीय घाटा बढ़ा कर महंगाई बढ़ाई है, वे लोग सरकार से हट गये, किन्तु उनके सहयोगी नयी सरकार के साथ अब भी जुड़े हुए हैं, जिनकी नीति और नीयत को सुधारे बिना देश की ज्वलन्त समस्याओं को नहीं सुलझाा जा सकता।
कुशासन, महंगाई, भ्रष्टाचार, कालाधन और महिला उत्पीड़न के विरुद्ध प्रभावी प्रचार अभियान से अभिभूत हो कर पूरे देश की जनता ने नरेन्द्र मोदी के पक्ष में ऐतिहासिक मतदान किया है। अतः सरकार को शीध्रता से उन समस्याओं को सुलझाने में देरी नहीं करनी चाहिये, जिससे जनता आज प्रभावित हो रही है। जनता को वह नेतृत्व कभी नहीं चाहिये, जिसे उसने ठुकरा दिया है, किन्तु ऐसी परिस्थितियां नहीं पैदा होनी चाहिये, जिससे जनता को हताश हो कर फिर उन्हीं घोटालाबाजों और भ्रष्टाचारियों की की शरण में जाना पड़े।