Monday 4 April 2016

ज्ञान और विज्ञान

विज्ञान का सीधा-सा अर्थ है-वस्तुओं की तमाम जानकारी हासिल करना। यदि ज्ञान को समझें तो ज्ञान का मतलब मानवीय मूल्यों के अनुरूप चिंतन करना और चरित्र के लिए आस्थावान बनना है। कहते हैं कि मनुष्य में जन्मजात पशु प्रवृत्तियां भरी होती हैं, लेकिन इन अवगुणों का नाश करके संस्कारी और आदर्शवादी बनाने की चिंतन प्रक्रिया को ज्ञान कहा गया है। अब अगर ज्ञान और विज्ञान की आपस में तुलना करें तो वह कुछ ऐसी होगी। हाइड्रोजन के दो कण जब ऑक्सीजन के संपर्क में आते हैं तो पानी बनता है-यह विज्ञान है, लेकिन इस पानी से जीव-जंतुओं की प्यास बुझती है-यह ज्ञान है।
दरअसल विज्ञान की दिशा ज्ञान है और ज्ञान के बाद वस्तुत: विज्ञान नहीं रह जाता। विज्ञान का चरमोत्कर्ष ज्ञान है। इसी ज्ञान को पाने के लिए वैज्ञानिक भी प्रयास कर रहे हैं। कहते हैं कि भौतिक उपलब्धियां विज्ञान का सच नहीं हैं, आत्म तत्व ही विज्ञान का सच है। विज्ञान ने अब तक प्रकृति के अनेक रहस्य खोज निकाले हैं, लेकिन वर्तमान में वह विनाश और पतन की सामग्री जुटाने में लीन है। खैर तमाम अनुसंधान अंत में कहीं न कहीं विज्ञान को विराम देंगे और उसका यह अंत निश्चित तौर पर ईश्वर पर जाकर ठहरेगा, क्योंकि ईश्वर को न मानना फिलहाल विज्ञान का भ्रम है। आकाश में तारे तभी तक टिमटिमाते हैं जब तक सूर्य का उदय नहीं होता। ठीक इसी तरह विज्ञान अनुसंधानों में तभी तक भटकता रहेगा जब तक उसे पूर्ण आत्मज्ञान नहीं हो जाता है। दार्शनिकों के मुताबिक आत्मज्ञान ही मूलविज्ञान है, जबकि आधुनिक विज्ञान इसका बिगड़ा हुआ स्वरूप है, क्योंकि जब तक किसी कार्य या ज्ञान के माध्यम से हम ईश्वर तक न पहुंचें तब तक ज्ञान अधूरा रहता है। उनके मुताबिक ईश्वर को भौतिक विज्ञान के तौर-तरीकों से जाना और सिद्ध किया ही नहीं जा सकता है। इसका कारण ईश्वर का प्राकृतिक पदार्थों से सर्वथा अलग होना है, जिसका प्रयोगशाला में अनुसंधान नहीं किया जा सकता। विज्ञान परमाणु को द्रव्य का सूक्ष्मतम कण मानकर अध्ययन करता है, जबकि अध्यात्म परमाणु को द्रव्य का अंतिम स्थूल कण मानता है। अर्थात विज्ञान अनंत की ओर चलता है और अध्यात्म अंत की ओर। जब विज्ञान की दिशा ठीक होगी तब वह ज्ञान की ही प्रतिछाया होगी।

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