Tuesday 5 April 2016

गाँधी वध क्यों ? हुतात्मा गोडसे के दिन पर विशेष

30 जनवरी सन् 1948 ई. की शाम को जब गाँधी जी एक प्रार्थना सभा में भाग लेने जा रहे थे, तब राष्ट्रवादी नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर मोहनदास गाँधी का वध कर दिया था । नाथूराम गोडसे ने मोहनदास गाँधी के वध करने के 150 कारण न्यायालय के सामने बताये थे। नाथूराम गोडसे ने जज से आज्ञा प्राप्त कर ली थी कि वे अपने बयानों को पढ़कर सुनाना चाहते है और उन्होंने वो 150 बयान माइक पर पढ़कर सुनाए थे। उनमे से कुछ कुछ कारण ये भी थे -
1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के नायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए। गान्धी जी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया। इसके बाद जब उधम सिंह ने जर्नल डायर की हत्या इंग्लैण्ड में की तो, गाँधी ने उधम सिंह को एक पागल उन्मादी व्यक्ति कहा, और उन्होंने अंग्रेजों से आग्रह किया की इस हत्या के बाद उनके राजनातिक संबंधों में कोई समस्या नहीं आनी चाहिए |
2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी जी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं, किन्तु गान्धी जी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।
3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी जी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।
4. मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी जी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग 1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी जी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।
5. 1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द की अब्दुल रशीद नामक मुस्लिम युवक ने हत्या कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी जी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।
6. गान्धी जी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।
7. गान्धी जी ने जहाँ एक ओर कश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को कश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।
8. यह गान्धी जी ही थे, जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।
9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी जी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।
10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी जी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।
11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी जी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।
12. 14-15 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी जी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी जी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।
14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और
13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।
15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी जी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।
16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण को देखते हुए, यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी जी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।
17.गाँधी ने गौ हत्या पर पर्तिबंध लगाने का विरोध किया।
18. द्वितीया विश्वा युध मे गाँधी ने भारतीय सैनिको को ब्रिटेन का लिए हथियार उठा कर लड़ने के लिए प्रेरित किया, जबकि वो हमेशा अहिंसा की पीपनी बजाते है.
19. क्या ५०००० हिंदू की जान से बढ़ कर थी मुसलमान की ५ टाइम की नमाज़? विभाजन के बाद दिल्ली की जमा मस्जिद मे पानी और ठंड से बचने के लिए ५००० हिंदू ने जामा मस्जिद मे पनाह ले रखी थी...मुसलमानो ने इसका विरोध किया पर हिंदू को ५ टाइम नमाज़ से ज़यादा कीमती अपनी जान लगी.. इसलिए उस ने माना कर दिया. उस समय गाँधी नाम का वो शैतान बरसते पानी मे बैठ गया धरने पर की जब तक हिंदू को मस्जिद से भगाया नही जाता तब तक गाँधी यहा से नही जाएगा. फिर पुलिस ने मजबूर हो कर उन हिंदू को मार मार कर बरसते पानी मे भगाया. और वो हिंदू - गाँधी मरता है तो मरने दो - के नारे लगा कर वाहा से भीगते हुए गये थे. रिपोर्ट --- जस्टिस कपूर. सुप्रीम कोर्ट. फॉर गाँधी वध क्यो ?
२०. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च 1931 को फांसी लगाई जानी थी, सुबह करीब 8 बजे। लेकिन 23 मार्च 1931 को ही इन तीनों को देर शाम करीब सात बजे फांसी लगा दी गई और शव रिश्तेदारों को न देकर रातोंरात ले जाकर ब्यास नदी के किनारे जला दिए गए। असल में मुकदमे की पूरी कार्यवाही के दौरान भगत सिंह ने जिस तरह अपने विचार सबके सामने रखे थे और अखबारों ने जिस तरह इन विचारों को तवज्जो दी थी, उससे ये तीनों, खासकर भगत सिंह हिंदुस्तानी अवाम के नायक बन गए थे। उनकी लोकप्रियता से राजनीतिक लोभियों को समस्या होने लगी थी।
उनकी लोकप्रियता महात्मा गांधी को मात देनी लगी थी। कांग्रेस तक में अंदरूनी दबाव था कि इनकी फांसी की सज़ा कम से कम कुछ दिन बाद होने वाले पार्टी के सम्मेलन तक टलवा दी जाए। लेकिन अड़ियल महात्मा ने ऐसा नहीं होने दिया। चंद दिनों के भीतर ही ऐतिहासिक गांधी-इरविन समझौता हुआ जिसमें ब्रिटिश सरकार सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करने पर राज़ी हो गई। सोचिए, अगर गांधी ने दबाव बनाया होता तो भगत सिंह भी रिहा हो सकते थे क्योंकि हिंदुस्तानी जनता सड़कों पर उतरकर उन्हें ज़रूर राजनीतिक कैदी मनवाने में कामयाब रहती। लेकिन गांधी दिल से ऐसा नहीं चाहते थे क्योंकि तब भगत सिंह के आगे इन्हें किनारे होना पड़ता।
उपरोक्त परिस्थितियों में नथूराम गोडसे ने गान्धी का वध कर दिया। न्यायलय में गोडसे को मृत्युदण्ड मिला किन्तु गोडसे ने न्यायालय में अपने कृत्य का जो स्पष्टीकरण दिया उससे प्रभावित होकर न्यायधीश श्री जे. डी. खोसला ने अपनी एक पुस्तक में लिखा- "नथूराम का अभिभाषण दर्शकों के लिए एक आकर्षक दृश्य था। खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ कि लोगों की आहें और सिसकियाँ सुनने में आती थीं और उनके गीले नेत्र और गिरने वाले आँसू दृष्टिगोचर होते थे। न्यायालय में उपस्थित उन मौजूद आम लोगों को यदि न्यायदान का कार्य सौंपा जाता तो मुझे तनिक भी संदेह नहीं कि उन्होंने अधिकाधिक सँख्या में यह घोषित किया होता कि नथूराम निर्दोष है।"

Monday 4 April 2016

ज्ञान और विज्ञान

विज्ञान का सीधा-सा अर्थ है-वस्तुओं की तमाम जानकारी हासिल करना। यदि ज्ञान को समझें तो ज्ञान का मतलब मानवीय मूल्यों के अनुरूप चिंतन करना और चरित्र के लिए आस्थावान बनना है। कहते हैं कि मनुष्य में जन्मजात पशु प्रवृत्तियां भरी होती हैं, लेकिन इन अवगुणों का नाश करके संस्कारी और आदर्शवादी बनाने की चिंतन प्रक्रिया को ज्ञान कहा गया है। अब अगर ज्ञान और विज्ञान की आपस में तुलना करें तो वह कुछ ऐसी होगी। हाइड्रोजन के दो कण जब ऑक्सीजन के संपर्क में आते हैं तो पानी बनता है-यह विज्ञान है, लेकिन इस पानी से जीव-जंतुओं की प्यास बुझती है-यह ज्ञान है।
दरअसल विज्ञान की दिशा ज्ञान है और ज्ञान के बाद वस्तुत: विज्ञान नहीं रह जाता। विज्ञान का चरमोत्कर्ष ज्ञान है। इसी ज्ञान को पाने के लिए वैज्ञानिक भी प्रयास कर रहे हैं। कहते हैं कि भौतिक उपलब्धियां विज्ञान का सच नहीं हैं, आत्म तत्व ही विज्ञान का सच है। विज्ञान ने अब तक प्रकृति के अनेक रहस्य खोज निकाले हैं, लेकिन वर्तमान में वह विनाश और पतन की सामग्री जुटाने में लीन है। खैर तमाम अनुसंधान अंत में कहीं न कहीं विज्ञान को विराम देंगे और उसका यह अंत निश्चित तौर पर ईश्वर पर जाकर ठहरेगा, क्योंकि ईश्वर को न मानना फिलहाल विज्ञान का भ्रम है। आकाश में तारे तभी तक टिमटिमाते हैं जब तक सूर्य का उदय नहीं होता। ठीक इसी तरह विज्ञान अनुसंधानों में तभी तक भटकता रहेगा जब तक उसे पूर्ण आत्मज्ञान नहीं हो जाता है। दार्शनिकों के मुताबिक आत्मज्ञान ही मूलविज्ञान है, जबकि आधुनिक विज्ञान इसका बिगड़ा हुआ स्वरूप है, क्योंकि जब तक किसी कार्य या ज्ञान के माध्यम से हम ईश्वर तक न पहुंचें तब तक ज्ञान अधूरा रहता है। उनके मुताबिक ईश्वर को भौतिक विज्ञान के तौर-तरीकों से जाना और सिद्ध किया ही नहीं जा सकता है। इसका कारण ईश्वर का प्राकृतिक पदार्थों से सर्वथा अलग होना है, जिसका प्रयोगशाला में अनुसंधान नहीं किया जा सकता। विज्ञान परमाणु को द्रव्य का सूक्ष्मतम कण मानकर अध्ययन करता है, जबकि अध्यात्म परमाणु को द्रव्य का अंतिम स्थूल कण मानता है। अर्थात विज्ञान अनंत की ओर चलता है और अध्यात्म अंत की ओर। जब विज्ञान की दिशा ठीक होगी तब वह ज्ञान की ही प्रतिछाया होगी।

Saturday 2 April 2016

सद्कर्तव्य

सद्कर्तव्य मुश्किल से मिले जीवन को व्यर्थ नहीं करना चाहिए, बल्कि इस जीवन में जितने सद्कर्तव्य किए जाएं उतना अच्छा। कर्म ही भाग्य कहलाता है, इसलिए पुरुषार्थ किए बगैर भाग्य का निर्माण नहीं हो सकता। इस संदर्भ में यह सवाल यह है कि कर्म का चुनाव कैसे किया जाए कि किस व्यक्ति को क्या कर्म करने हैं? विद्वान कहते हैं कि अपनी जिम्मेदारियों को निष्काम भाव से निभाना ही कर्म है-सद्कर्तव्य है। अपने कर्तव्य का निर्णय किस प्रकार करना चाहिए।
इसके जवाब में श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं-‘क्या करना चाहिए, इसका निर्णय करने के लिए शास्त्र ही प्रमाण है। शास्त्र के विधान को जानकर आपको उसी के अनुसार आचरण करना चाहिए। सिकंदर और पोरस में युद्ध चल रहा था। सिकंदर को सूचना मिली कि शत्रु देश का एक साधु अपनी जड़ी-बूटियों से उसके घायल सैनिकों का उपचार कर रहा है। सिकंदर ने उस साधु से मुलाकात की और पूछा, तुम शत्रुओं की सेवा क्यों कर रहे हो? साधु ने कहा-‘मेरी दृष्टि में मित्र-शत्रु सभी बराबर हैं। मैं प्राणियों की सेवा करता हूं। सिकंदर बोला-‘मैं तुम्हारी बात समझा नहीं।
साधु ने मरी हुई एक चींटी उठाई और पूछा-‘क्या तुम इसे जीवित कर सकते हो?’ जब सिकंदर ने इसका उत्तर नहीं में दिया तो साधु ने कहा-जब तुम एक चींटी तक को प्राण नहीं दे सकते, तो अनगिनत मनुष्यों के प्राण लेने का तुम्हें क्या अधिकार है? सिकंदर को कोई जवाब नहीं सूझा और उसने अपना सिर झुका लिया। 1शास्त्रों में लिखा है कि आपके हर कर्र्मो का फल इसी जीवन में मिलता है यानी बबूल के पेड़ बोने पर आम की लालसा नहीं रखनी चाहिए। सद्कर्तव्य और कुछ नहीं, बल्कि मानव धर्म का पालन करना है।
महर्षि दयानंद किसी स्थान पर विराजमान थे। उन्होंने देखा कि एक मजदूर सामान से लदे एक ठेले को चढ़ाई पर ले जा रहा है। भार अधिक होने के कारण मजदूर प्रयास करने के बावजूद ठेले को आगे नहीं बढ़ा पा रहा है। इससे नाराज उसका मालिक बेंत से उसे पीट रहा है। महर्षि दयानंद उठे और ठेला आगे बढ़ाने में उस मजदूर की मदद करने लगे। उन्हें सफलता मिल गई, लेकिन यह नजारा देखकर सेठ हाथ जोड़कर दयानंद के सामने खड़ा हो गया। दयानंद ने उससे कहा-यह तो उनका कर्तव्य व धर्म था।

Friday 1 April 2016

व्यवहार कुशल

मनुष्य की पहचान उसकी बोलचाल, रहन-सहन और उसके व्यवहार से होती है। मनुष्य अच्छा है या बुरा है, इसके लिए वह कोई सर्टिफिकेट लेकर नहीं घूमता, उसका व्यवहार ही उसके चरित्र का प्रमाण-पत्र है। सच कहूं तो विश्वविद्यालय की पढ़ाई के लिए सर्टिफिकेट की जरूरत पड़ती है, लेकिन जीवन के विश्वविद्यालय में उसका व्यवहार ही प्रमाण-पत्र होता है। इसलिए जो व्यक्ति व्यवहार कुशल होता है, उसके पास जीवन का सबसे बड़ा प्रमाण-पत्र होता है और जो व्यक्ति व्यवहार कुशल नहीं है, जिसे कुछ भी पता नहीं हो कि हमें किससे कैसा व्यवहार करना चाहिए, बड़े-छोटों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए तो वह व्यक्ति मनुष्य दिखता जरूर है, लेकिन वह मनुष्य है ही नहीं। इसलिए जीवन में व्यवहार कुशल होना बहुत ही महत्वपूर्ण है।
व्यवहार कुशल होना एक विज्ञान है, जीवन जीने की विधि है। इसे अभ्यास से सीखा जाता है। उदंड होने में कोई परेशानी नहीं होती। उदंड होना आसान है, सुशील, सज्जन और व्यवहार कुशल होना कठिन है। मां के गर्भ से न तो कोई व्यवहार कुशल होकर आता है और न ही कोई उदंड होकर। सभी लोग सामान्य स्थिति में ही पैदा होते हैं। जिनके घर का वातावरण सुंदर होता है, जिनके घरों में बड़े-छोटों को लिहाज किया जाता है, जिनके घरों में अनैतिक कार्य नहीं होते हैं, उनके ही घरों में बच्चे सुशील, सुंदर और अनुशासन प्रिय होते हैं।
इसलिए बच्चों का चरित्र निर्माण बहुत कुछ उसके घर का वातावरण और दोस्तों की संगत पर निर्भर करता है। व्यवहार कुशल होना सफल जीवन का एक सुखद मार्ग है। जो व्यक्ति व्यवहार कुशल होता है, वह जीवन में कभी असफल नहीं होता, उसके जीवन में पग-पग पर सफलता मिलती रहती है। वह जहां कहीं भी जाता है, अपने व्यवहार से दूसरों को प्रभावित कर लेता है और उससे अपना काम निकाल लेता है। अगर आप किसी को सफल व्यक्ति मानते हैं तो भी मान लेना चाहिए कि निश्चित रूप से वह व्यक्ति दूसरों की अपेक्षा अधिक व्यवहार कुशल है और जो लोग असफल हैं, उनके संबंध में मान लेना चाहिए कि यह व्यक्ति आचरण और व्यवहार से उदंड है या फिर हीन भावना से ग्रस्त हैं और इसे अपनी काबलियत पर भरोसा नहीं है।