Wednesday 2 March 2016

कांग्रेस सुप्रीमों की नीति और नीयत संदेह के घेरे में

कांग्रेस सुप्रीमों की नीति और नीयत संदेह के घेरे में
जेएनयू घटनाक्रम विवाद नहीं, राष्ट्र की एकता, अखंड़ता और सम्प्रभुंता को दी गर्इ बेबाक खुली चुनौती है, जो राजद्रोह है, जिसे अक्षम्य अपराध की श्रेणी में रखा जाता है। लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में सत्ता छीनी नहीं जाती, वरन बेलेट की ताकत से उस पर अधिकार किया जाता है। भारतीय लोकतंत्र में प्रभावी हुए नकली राजनेता जो बेलेट से हार गये, किन्तु देश के दुश्मनों से मिल कर बुलेट की ताकत से जनता की सरकार को गिराने का ख्वाब संजो रहे हैं। भारत में इन दिनों सियासी षड़यंत्रों का दौर चल रहा है। सत्ता खोने की पीड़ा से छटपटाते हुए जो राजनेता प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से राजद्रोह के समर्थन में खड़े हैं, वे राजधर्म भूल गये हैं। धनबल से इन्होंने मुट्ठी भर युवाओं को राजद्रोह के लिए मोहरा बना रखा है, किन्तु स्वयं पर्दे के पीछे खड़े रह कर एक दुखद नाटक को निर्देशित कर रहे हैं।
जेएनयू प्रकरण में कांग्रेस सुप्रीमों की संदिग्ध भूमिका इस बात को प्रमाणित करती है कि वे शतप्रतिशत विदेशी है और उनके मन में देशभक्ति का लेश मात्र भी भाव नहीं है। वे किसी भी तरह सियासी षड़यंत्रों के जरिये अपने मंदबुद्धि पुत्र को सत्ता के शीर्ष पर बिठाना चाहती है। शासन पर नियंत्रण कर भारत के प्राकृतिक संसाधनों को लुटना चाहती है। चाटुकारिता में निष्णात उनके स्वामी भक्तों के लिए मालकिन की आज्ञा शिरोधार्य है। उनका ज़मीर मर चुका है। वे अपना स्वाभिमान खो चुके हैं। मालकिन के आदेश को पत्थर की लकीर मान कर उसका अनुशरण करते हैं। कांग्रेसी एक परिवार के सरोवर की मछलिया है और जब भी सरोवर का पानी सूखने लगता है, वे सत्ता के लिए तड़फने लगते हैं।
जेएनयू प्रकरण ने कांग्रेस सुप्रीमों के चरित्र को तार तार कर दिया है। यह भी साबित कर दिया है कि कांग्रसियों के लिए सत्ता पहले है, राष्ट्र बाद में। देश को आज़ाद कराने का दावा करने वाली पार्टी सत्ता पाने के लिए भारत विरोधी ताकतों के साथ मिल कर राष्ट्र की सम्प्रभुता का सौदा कर रही है। यह घिनौना सच है, जिसे जानने के बाद भारत का हर राष्ट्र भक्त नागरिक कांग्रेसी नेताओं, विशेषकर उनकी सुप्रीमों के संदिग्ध चरित्र को संदेह की दृष्टि से देख रहा है। इस तथ्य की पुष्टि के लिए निम्न तथ्य पर्याप्त है:-
एक: जेनएनयू में जो कुछ हुआ उसे देख कर और सुन कर प्रत्येक भारतीय नागरिक शर्मसार हुआ। ऐसे समय में जब भारत का हर नागरिक क्षुब्ध था। उद्वेलित था। देशद्रोही तत्वों के विरुद्ध सख्त कार्यवाही करने के लिए सरकार से गुहार कर रहा था, तब कांग्रेस सुप्रीमों ने अपने पुत्र को सरकार की कार्यवाही का विरोध करने और देशद्रोही तत्वों का पक्ष लेने के लिए जेएनयू परिसर में क्यों भेजा ? कांग्रेसी प्रवक्ताओं को क्यों सरकार की कार्यवाही के विरुद्ध भड़ास निकालने का निर्देश दिया ? क्या राजद्रोह के पक्ष में तर्क देना कांग्रेसियों के लिए जरुरी था ? अभिव्यक्ति की आज़ादी का मतलब यह नहीं है कि भारत को तोड़ने का संकल्प लेने वाले तत्वों के पक्ष में जा कर खड़े हो जाये ! आखिर कांग्रेस सुप्रीमों वामपंथियों, आतंकी आकाओं और केजरीवाल जैसे नेताओं के साथ मिल कर किस प्रकार के सियासी षड़यंत्र को अंजाम देना चाहती है ? क्या ऐसा करने से नरेन्द्र मोदी को सत्ता से हटाने में सफल हो जायेगी ?
दो: अफजल गुरु भारतीय संसद को बम से उड़ाने और सांसदों को मारने के अपराधिक षड़यंत्र का मुख्य रणनीतिकार था। इस शख्स ने अपना अपराध टीवी के पर्दे पर आ कर पूरे देश के सामने स्वीकार किया था। न्यायालय ने सारे प्रमाणों को जानने के बाद उसे फांसी की सजा सुनार्इ थी। ऐसे अपराधी की फांसी कांग्रेस सुप्रीमों आठ साल ताक क्यों टालती रही ? फिर सियासी लाभ के लिए क्यों भयभीत हो कर चुपचाप फांसी दे दी? अब जब ऐसेा लग रहा है कि अफजल गुरु की फांसी से उसे वोटों को नुकसान हो रहा है, तो क्यों कांग्रेसी नेता अफजल की फांसी को एक भूल बता रहे हैं ? कांग्रेस सुप्रीमों के आदेश से क्यों चिदम्बरम न्यायालय के निर्णय को गलत ठहरा रहे हैं ? राष्ट्र सवाल पूछ रहा है- ‘देशद्रोहियों को हीरो बताने वालों के पक्ष में खड़े हो कर कांग्रेसी आखिर पाना क्या चाहते हैं ?’
तीन: इशरत जहां आतंकी थी। उसे नरेन्द्र मोदी का वध करने के उद्धेश्य से अहमदाबाद भेजा गया था। गुजरात पुलिस ने उसे एक मुठभेड़ में मारा था। जब एक आंतकी के साथ पुलिस की मुठभेड़ होती है, उसे फर्जी कैसे कहा जा सकता है ? वर्षों तक कांग्रेस सुप्रीमों मुठभेड़ को फर्जी बताते हुए न्यायालय में और न्यायालय के बाहर अल्पसंख्यक समुदाय की सहानुभुति अर्जित करने] पाकिस्तानी आतंकी संगठनों को खुश करने के लिए इशरत जहां को मासूम महिला बता कर क्यों नरेन्द्र मोदी को घेरती रही ? यहां तक कि लोकसभा चुनावों के ठीक पहले इशरत जहां की हत्या के मामले को जोर-शोर से उठाया था और नरेन्द्र मोदी को मुस्लिम महिला की हत्या का दोषी बताने का प्रयास किया था। अब जब यह तथ्य सामने आ गया है कि भारत के गृहमंत्रालय के पास इस बात की जानकारी थी कि इशरत जहां आतंकी थी, फिर जानबूझ कर कांग्रेस सुप्रीमों के इशारे पर कांग्रसियों ने इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ के मामले को इतना जोर-शोर से क्यों उछाला ? क्या कांग्रेस सुप्रीमों के लिए अपने प्रमुख प्रतिद्वंद्वी से निपटने के लिए आतंकवादियों को हीरो बनाना जरुरी था ?
चार: बम्बर्इ के ताज होटल में हुर्इ आतंकी कार्यवाही के बाद दिग्विजय सिंह का बेतुका बयान आया था, जिसमें उन्होंने इस आतंकी प्रकरण को भगवा आतंकवाद से जोड़ कर शहीद पुलिसकर्मी को आरएसएस का एजेंट बताया था। इस बेतुके बयान पर कांग्रेस सुप्रीमों चुप क्यों रही ? इस बयान पर उन्होंने दिग्विजय सिंह को फटकार क्यों नहीं लगार्इ ? क्या इसका सीधा अर्थ यह नहीं निकलता कि कांग्रेस सुप्रीमों के आदेश से ही दिग्विजय सिंह ने ऐसा बयान दिया था ? इसी तरह बाटला हाऊस आतंकी घटना में आतंकियों के मारे जाने पर वे दुखी हो कर बहुत रोर्इ थी। इस बयान को उन्होंने खंड़न क्यों नहीं किया ? शहीद पुलिसकर्मी के प्रति सहानुभूति क्यों नहीं प्रकट की ?
निश्चय ही कांगेस सुप्रीमों अपने विरोधियों से निपटने के लिए आतंकी संगठनों से मदद ले रही है। यदि ऐसा नहीं है तो उनके दस साल के शासनकाल में पूरा देश आतंकियों के लिए खुला अभयारण्य क्यों बन गया ? पूरे देश में स्लीपर सेल का जाल बिछ गया \ यूपीए सरकार ने इस जाल को क्षत-विक्षत करने का संकल्प क्यों नहीं दोहराया ?
कांग्रेस सुप्रीमों के इशारे पर आज संसद को उडाने वालों का पक्ष लेने वाले जानबूझ कर संसद सत्रों को हंगामें की भेंट चढ़ा रहे हैं। यह इस बात को साबित करती हैं कि कांग्रस सुप्रीमों की भारतीय संसदीय व्यवस्था में आस्था नहीं है। इसे वे अपने घृणित मकसद के लिए इस्तेमाल करना चाहती है। उनके इस दुष्कृत्य पर मीडिया मौन है। भारत के बुद्धिजीवी कुछ भी लिखने बोलने से सकुचा रहे हैं। किन्तु भारत की जनता यदि देशद्रोही शख्सियत के विरुद्ध विद्रोही हो जायेगी तब भारत की राजनीति से उनका निष्कासन सम्भव हो पायेगा। 

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