Saturday 7 September 2013

जो राजनीतिक दल विदेशो में जमा काले धन को लाने की गारन्टी देगा, वो ही हमसे वोट लेगा

भोजन, शुद्ध पानी, आवास, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थय ये जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं हैं और इसे पाने का प्रत्येक नागरिक को अधिकार रहता है। लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में जनता जिन्हें शासन का अधिकार सौंपती है, उनका यह पहला दायित्व हैं कि वे नागरिकों को ये सभी सुविधाएं उपलब्ध करावें। यह हमारा दुर्भाग्य है कि लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को आत्मसात किये हुए छिंयासठ वर्ष हो गये हैं, किन्तु भारत के अधिकांश नागरिक जीवन की इन मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित है। यह हमारे लोकतंत्र की विफलता का सूचक है।
ऐसा नहीं है कि सरकारों ने नागरिकों की इन सुविधाओं के लिए काम नहीं किया। प्रत्येक सरकार नागरिकों को केन्द्र में रख कर ही योजनाएं बनाती है और इसके लिए धन और आवश्यक संसाधन जुटाती है। सरकारें विभिन्न करों के रुप में जनता से राजकोष में जो राजस्व एकत्रित करती है, उसका उद्धेश्य भी  यही रहता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न परियोजनाओं को पूरी करने पर कर्इ लाख करोड़ खर्च किये गये हैं वे भी भारतीय नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए ही किये गये है। इन परियोजनाओ को लिए विदेशों से कर्ज भी लिया गया है।
अब प्रश्न उठता है कि जब भारत की  सरकारों ने इतना धन जनता के लिए खर्च किया, फिर इसके सुफल क्यों नहीं प्राप्त हुए ? भारत आज भी दरिद्र और पिछड़ा राष्ट्र क्यों बना हुआ है ? भारतीय नागरिक जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित क्यों है ? इन प्रश्नों का उत्तर स्वर्गीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी के शब्दों में दिया जा सकता है- ‘सरकार यदि एक रुपया भेजती है, तो जनता के पास मात्र पंद्रह पैसे ही पहुंचते हैं।’ अर्थात पिच्चयासी पैसों का गबन हो जाता है। उनकी इस बात को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। पिछले छियांसठ वर्षों से यह क्रम निरन्तर चल रहा है। देश की दरिद्रता का यही मूल कारण है।
वर्षों पूर्व यह बात राजीव गांधी ने जनता को एक सार्वजनिक सभा में कही थी। परन्तु लूट का यह क्रम न वे रोक सके और न ही आने वाली सरकारे। यह क्रम अबाध रुप से आज भी जारी है। जिन्हें जनता शासन सौंपती है, वे और उनका सरकारी तंत्र ही लुटरे हैं। भारत की जनता इन्हें पहचानती है। पर वह असहाय है, वह इनके विरुद्ध कुछ नहीं कर पाती। खुली और अबाध लूट से लूटेरे धनवान होते रहें और जनता निर्धन। भारतीय समाज दो भागों में विभक्त हो गया- एक शोषक और दूसरा शोषित । भारत में भी दो भारत बन गये- एक अभावग्रस्त दरिद्र भारत और दूसरा साधन सम्पन्न समृद्ध भारत अर्थात इंड़िया।
जनता का लूटा हुआ धन प्रापर्टी और ऐशो आराम में खर्च हो रहा है। भारत के प्रत्येक शहर में पॉश कॉलोनियां विकसित हुर्इ है। समृद्ध भारतीयों के लिए शहरों में अलग बाज़ार विकसित हुए हैं, जिनकी दुकानों पर साधारण  भारतीय चढ़ने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाता। दरअसल निरन्तर शोषण का क्रम जारी रहने से निर्धन भारत के नागरिक अभावों और महंगार्इ से काफी टूट चुके हैं, वहीं समृद्ध भारतीयों की खुशहाली निरन्तर बढ़ने से वे जीवन जीने का भरपूर लुत्फ उठा रहे हैं।
ऐसा क्यों हो रहा है, इसका मूल कारण यही है कि जो लोग सार्वजनिक जीवन में हैं वे सही लोग नहीं है। भारत के अधिकांश राजनीतिक दल और उनसे जुड़ी सरकारें सार्वजनिक धन की लूट में लगी हुर्इ है। कारण यह है कि इन्होंने धूर्तता और तिकड़़म से निर्धन भारत को बांट रखा है। यदि निर्धन भारत एक हो कर अपने वोट देने के पहले इनसे कुछ सवाल पूछें, तो अधिकांश राजनेता उनके सवालों के जवाब नहीं दे पायेंगे।
भारत की एक राजनीतिक पार्टी, जिसने भारत पर पचपन वर्षों तक शासन किया है, सार्वजनिक लूट की मुख्य अभियुक्त है।  इस समय भी इस पार्टी ने  कर्इ बड़े आर्थिक घोटाले कर जनता के धन को लूटा है।  यह  पार्टी निर्धन भारत की मसीहा बनने के लिए अब भारतीयों को भूख से नहीं मरने के लिए भोजन की गारन्टी देने का बिल ले कर आयी है। अर्थात सौ चूहे खा कर बिल्ली हज करने जा रही है। भारत की जनता की बदहाली की जिम्मेदार पार्टी अपने आपको जनता का शुभ चिंतक घोषित करने के लिए धुम-धड़ाके से प्रचार कर रही है।
आज़ादी के छियांसठ वर्ष बाद और वर्तमान सरकार के कार्यकाल के नो वर्ष पूरा होने के उपरान्त जनता की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक -’भूख’ के प्रति सरकार गम्भीरता दिखा रही है। परन्तु सरकार से कुछ सवाल पूछे जा सकते हैं- आपके इस बिल से एक बात तो साबित होती है कि देश की 67 प्रतिशत आबादी अपने लिए दो वक्त का भोजन जुटाने से वंचित है। आप यह बता सकते हैं कि देश की इतनी अधिक जनसंख्या को  इस हालत में किसने पहुंचाया ? क्या सही नहीं है कि भ्रष्टाचार और कुशासन से देश की यह हालत हुर्इ है ? इस स्थिति के लिए आप किसे जिम्मेदार मानते हैं ? छियांसठ साल बाद केवल भूख से निज़ात दिलाने की गारन्टी दिला रहे हैं, परन्तु यह बतार्इये कि जनता की अन्य आवश्यकताएं- स्वच्छ पेयजल, आवास, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थय सुविधाएं उपलब्ध कराने में और कितना समय लगायेंगे ? यदि एक-एक समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए पांच-पांच साल लगायेंगे, तो निश्चय ही पच्चीस-तीस वर्ष और लग जायेंगें। अब बतार्इये कि अब तक आप क्या करते रहें ? अब तक भारतीय जनता की मूलभूत आवश्यकताओं पर सरकार ने कितना पैसा खर्च किया ? यदि उस पैसे का सही उपयोग नहीं हुआ, तो पैसा गया कहां ?
आप बहुत समय और धन की बरबादी कर चुके हैं । अब हम आपके छलावे में आने वाले नहीं हैं। हम आपके द्वारा दी जाने वाली भोजन की गारन्टी से खुश नहीं हैं। हम तो यह जानना चाहते हैं कि निर्धन भारतीय जनता का लूटा हुआ धन कहां है ? हमे हमारे पैसे का हिसाब चाहिये। यदि आप हिसाब देंगे और उस पैसे को लाने की गारन्टी देंगे, तभी हम आपको वोट देंगे।
भारतीय जनता को यह जानकारी मिल रही है कि विदेशी बैंकों में भारतीयों के कर्इ लाख करोड़ रुपया जमा है। यदि यह धन वापस आ जाय, तो भारतीय नागरिकों की सभी समस्याओं का हल खोजा जा सकता है। उन्हें जीवन की सभी मूलभूत आवश्यकताएं एक साथ उपलब्ध करायी जा सकती है। यह पैसा इतना है कि भारत सरकार का विदेशी कर्ज उतर जायेगा। सरकार को नये कर लगाने की आवश्यकता नहीं रहेगी। अर्थात महंगार्इ एक झटके से कम हो जायेगी।
यह सही है कि छियांसठ वर्षों की निरन्तर लूट की राशि निश्चय ही बड़ी होगी। जो आंकड़े बताये जा रहे हैं, अतिश्योक्तिपूर्ण हो सकते हैं, किन्तु यह बात सौ प्रतिशत सही है कि विदेशों में भारतीयों का धन हैं। यह धन राजनेताओं, नौकरशाहों और उद्योगपतियों का है, जो समृद्ध भारत-इंडिया के नागरिक हैं और काफी शक्तिशाली हैं। इनकी शक्ति तभी क्षीण हो सकती है, जब उस पार्टी की सरकार नहीं बने, जो पार्टी विदेशों में जमा काले धन को भारत में लाने की गारन्टी नहीं दे सके।
इस तरह भारतीय जनता को यह मालूम हो जायेगा कि किस पार्टी के अधिकांश नेताओं का काला धन विदेशों में जमा हैं। अत: हम निर्धन भारत के नागरिक राजनीतिक पार्टियों को एक संदेश दे सकते हैं – हमें केवल भूख से नहीं, अपनी सभी समस्याओं से निज़ात चाहिये। हमारा लूटा धन वापिस चाहिये, क्योंकि इस पर हमारा हक है। जो पार्टी अगले चुनावों के पूर्व इस धन को वापिस लाने का वचन देगी, उस पार्टी के पक्ष में हम सभी निर्धन भारत के नागरिक एक हो कर वोट देंगे।

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