Friday 6 September 2013

जो कांग्रेस साम्राज्य का पतन चाहते हैं, उन्हें आपको प्रधानमंत्री बनाने के सपने आते हैं, मोदी जी !

करोड़ो भारतीयों के मन में ऐसा सपना है। देश भर में फैले लाखों पार्टी कार्यकर्ता ऐसे सपने के पूरा होने की आशा संजोये बैठे हैं। किन्तु आपकी पार्टी दुविधा और द्वंद्व में उलझी हुर्इ है। पार्टी के कुछ नेताओं को न जाने क्यों आपको ले कर डरावने सपने आ रहे हैं। अनजाने में वे भ्रष्ट कांग्रेसी साम्राज्य की नींव को और मजबूत कर रहे हैं। पता नहीं क्यों करोड़ो मतदाताओं और लाखों कार्यकर्ताओं के सहारे ऊंचार्इ पर बैठे नेताओं को ज़मीन नही दिखायी दे रही है। उन्हें शायद इस बात का अहसास नहीं है कि अपने अहं से बड़ा पार्टी का कद होता है और पार्टी से बड़ा देश होता है। अहं की तुष्टि के लिए पार्टी और देश को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करना अपने आपको धोखा देना होता है।
सरकार खाद्य सुरक्षा बिल के पास होने के पहले ही प्रिंट व दृश्य मीडिया में उस बिल के ढ़ोल पीट रही थी। यह भी मालूम था कि बिल के पास हो जाने पर ढ़ोल को और जोर-शोर से पीटेगी, ताकि कोयले के बवंड़र का शोर दब जाये। उस बिल में कर्इ खामियां थी, जिसे पार्टी के नेता प्रभावी ढंग से लोकसभा और राज्यसभा में उठा चुके थे, फिर क्यों उस बिल को पास हो जाने दिया। यह जानते हुए कि यदि बिल पास हो गया तो इससे पार्टी को एक प्रतिशत भी लाभ मिलने वाला नहीं है। यदि पार्टी की ऐसी ही लुंज-पुंज नीति रही, तो कांग्रेस का मजबूत साम्राज्य उखड़ने के बजाय और अधिक मजबूत हो जायेगा।
विज्ञापनों से मीडिया को करोड़ो की आमदनी हो रही है। मीडिया सरकार के पक्ष में गीत गा रहा है। अखबारों में बिके हुए लेखक गरीबों के कल्याण वाला एक एतिहासिक बिल बता रहे हैं। इसके समर्थन में कशीदे काढ़ रहे हैं। अर्थव्यवस्था की बदहाली का दर्द भूल कर सरकार के सुर में अपना सुर मिला रहे हैं। कांग्रेस में गजब का आत्मविश्वास लौट आया है। तभी कोयला घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणियों का कोर्इ असर नहीं पड़ा। पार्टी के नेताओं का गरुर बढ़ गया। सभी टीवी चेनल टिप्पणियों को दिखाने के बजाय आसाराम सीरियल में व्यस्त हो गये। मानो पूरे देश में इस समय कोर्इ महत्वपूर्ण घटनाएं घट ही नहीं रही है।
कांग्रेसी नेता अपनी जीत पर फूले नहीं समा रहे हैं। उन्हें लग रहा है -गरीबो के मसीहा बन कर जनता के बीच में जायेंगे। जनता भ्रष्टाचार और महंगार्इ को भूल जायेगी। कोयले की कालिख धुल जायेगी। देश को दिवालिया करने की कीमत पर वे चुनाव जीत जायेंगे। एक हारी बाजी वे जीत जायेंगे और भाजपा जीती हुर्इ बाजी हार जायेगी। सम्भवत: इसीलिए प्रधानमंत्री कोयला घोटालें पर बड़ी हैकड़ी से झूठ बोल कर विदेश चले गये और कोयला मंत्री फायले गुम होने पर झूठी दलीले दे रहे हैं। बोलते समय उनके चेहरे की भाव भंगिमा में छल और कपट का अहसास होता है। ऐसा लगता हैं उन्हें विपक्ष और जनता से कोर्इ भय नहीं है। उन्हें इस बात का गरुर है कि हम कुछ भी करें, विपक्ष कुछ भी कहता रहे हैं, हम निडर हो कर सच को नकारते रहेंगे। झूठ बोलते रहेंगे। क्योंकि बाजी अंतत: हमे ही जीतनी है। सत्ता में हैं और सत्ता में फिर लौटेंगे। हमारा कौन क्या बिगाड़ सकरता है।
परन्तु स्वाभिमानी भारतीयों को यह अभिमान बहुत अखर रहा है। मोदी तो उन भारतीयों के एक प्रतीक बन गये हैं, जो एक भ्रष्ट सामंती पार्टी के कुशासन से मुक्ति चाहते हैं। देश को आज की परिस्थितियों में एक ऐसा नेता चाहिये, जो भ्रष्ट शासन को उखाड़ने में पूरी ताकत झोंक दें। जिसके पास प्रतिकूल परिस्थितियों में संघर्ष करने का अद्भुत साहस हो। मन में दृढ़ संकल्प और लक्ष्य तक पहुंचने की उत्कट जिजीविषा हो। परन्तु ऐसी शख्सियत के मार्ग में अपने ही अवरोध बन कर खड़े हो जाय, तो इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा।
लोकतंत्र को अधिनायकतंत्र में तब्दील करने का कांग्रेस ने कभी दुस्साहस किया था। आज कांग्रेस लोकतंत्र का सामंतीकरण करने में सफल हो रही है। प्रधानमंत्री पद की सारी शक्तियां छीन ली गयी है। प्रधानमंत्री पद पर बैठा व्यक्ति निर्जीव पुतले की तरह रह गया है, जो चाबी भरने पर बोलता है। दरअसल भारत की जनता को अब सता के शीर्ष पर किसी रहस्यमय व्यक्तित्व को महिमामंड़ित होते हुए देखने से चिढ़ हो गयी है। उसे मुखर व्यक्तित्व चाहिये, जो देश की हर समस्या पर बोलने के लिए तैयार हो। जनता से सीधे संवाद करने में जिसे कोर्इ झिझक नहीं हो। उसके र्इद-गिर्द कर्मठ और श्रेष्ठ प्रशासनिक क्षमता वाले सहयोगी हो न कि चापलूसों का हुजूम, जो अपने मालिक की जय-जयकार में ही दिन रात एक कर रहे हों।
दरबारी एक नौसिखिये राजकुमार को आगे कर एक कठिन रण जीतना चाहते हैं। उन्हें मालूम है कि उनके सेनापति में आत्मविश्वास की कमी है। वह विचारशून्य है। वह ठोस व व्यावहारिक रणनीति बनाने के बजाय मूखर्ततापूर्ण आदर्शवादी बाते करता हैं।  जो कभी भी देश की ज्वलन्त समस्याओं पर कुछ भी बोलना उचित नहीं समझाता है। किन्तु ऐसी शख्सियत ही दरबारियों को पसंद है। क्योंकि पार्टी को विचारों और नीतियों से कोर्इ मतलब नहीं है। कुशाग्रता और बोद्धिक क्षमता का होना भी वे आवश्यक नहीं मानते। बस उस व्यक्तित्व के शरीर में एक परिवार का डीएनए हैं, जो उनकी सारी कर्मजोरियों को छुपाने में समर्थ है।
दरबारियों को उन्हें स्वीकार करना आवश्यक हो सकता है। किन्तु हम भारतीय नागरिकों को उन्हें स्वीकार करने की कोर्इ विवशता नहीं है। देश में कर्मठ और योग्य राजनेताआ का दिवाला नहीं निकल गया है। कांग्रेस साम्राज्य को जनता से शक्तिशाली नहीं बनाया, वरन उन स्वार्थी क्षत्रपों ने उसकी शक्ति को अपने स्वार्थ के कारण बढ़ायी है। भविष्य में भी भारत की जनता चुनाव जितने के सारे पैंतरे अजमाने के बाद भी ठुकरा देगी, किन्तु दोगले क्षत्रपों के सहारे एक हारी हुर्इ बाजी कांग्रेस जीतने की आस लगाये बैठी है। यह उसके गरुर का मुख्य कारण है।
भाजपा के लिए यही कठिन चनौती है। मोदी इस चुनौती को स्वीकार कर रहे हैं। वे देश को एक भ्रष्ट व अकर्मण्य शासन से मुक्ति दिलाने के लिए दृढ़ संकल्प दिखा रहे हैं। देश की जनता धीरे-धीरे उनसे जुड़ रही है। उनकी लोकप्रियता में हर राजनीतिक दल को अपनी पराजय दिखार्इ दे रही है। इसीलिए अगले लोकसभा चुनावों में मोदी को ले कर कर्इ तरह की टिप्पणियां की जायेगी। 1984 में सिखों के कत्लेआम की दोषी पार्टी बार-बार 2002 के गुजरात दंगो की याद दिलायेगी।र  उन्हें देश का विलेन बनाया जायेगा। परन्तु इससे उनकी लोकप्रियता में कमी नहीं आयेगी। उनकी लोकप्रियता बढ़ती ही जायेगी।
परन्तु कांग्रेस के खोखले साम्राज्य को ध्वस्त करने के लिए भाजपा नेताओं को  अपना अहं त्याग कर मोदी का नेतृत्व स्वीकार करने में झिझक हो रही है। जबकि इस समय एक भ्रष्ट साम्राज्य को उखाड़ने के लिए मिल कर प्रयास करने की चुनौती है। अब समय कम रह गया है। अब ऊहापोल और द्वंद्व में समय गवांना अपने पावों पर कल्हाड़ी मारने के बराबर है। कहीं ऐसा नहीं हो कि उनका अहं पार्टी को भारी नुकसान पहुंचा दें और इतिहास पुन: 2004 और 2009 की स्थिति दोहरा दें। यदि ऐसा हो गया तो यह भारत की जनता के लिए एक दुर्भाग्यजनक स्थिति होगी। देश बरबाद हो जायेगा। विकास में मीलों पीछे चला जायेगा। जनता के कष्ट बहुत अधिक बढ़ जायेंगे। इस सब के दोषी भाजपा के वे नेता होंगे, जिन्होंने अपना झूठा अहं नहीं छोड़ने का हठ किया था।

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