Friday 9 August 2013

पहले हमारे सवालों के जवाब दीजिये, फिर हमारे वोट लीजिये

एक गाल पर खैरात की पप्पी और दूसरे गाल पर महंगार्इ का तमाचा जड़ कर एक पार्टी को चलाने वाले यह सोच रहे हैं- भारतीय  मूखोर्ं व अज्ञानियो की जमात है और इन्हें भेड़ो की झूंड़ समझ कर चाहे जिधर हांका जा सकता है। प्रलोभन और लालच दे कर इनके वोटों को खरीदा जा सकता है। परन्तु इस बार वे अपने मिशन में  सफल नहीं होंगे। भारतीय जनता अब जागरुक हो गयी है। वह इतनी मूर्ख भी नहीं  है, जितनी वे उसे समझने की भूल हो रही हैं। जनता समझ गयी है- जनता का पैसा जनता को ही लूटा कर वाह-वाही बटोरने का प्रयास एक छलावा है। धोखा है। अपने पापों पर पर्दा डालने का निरर्थक प्रयास है।
अत: वे जनता को पटाने के लिए चाहे जितने जतन करें, वह पटने वाली नहीं है। भारतीय जनता सार्वजनिक रुप से अपने सवालों का जवाब चाहती है। वह  सवालों के उत्तर भी उन्हीं से सुनना चाहती हैं, जो एक राजनीतिक पार्टी की शीर्षस्थ शक्तिशाली सख्शियते हैं। सता सुख भोग रहे हैं और पुन: सत्ता पाने के लिए लालायित हैं। जनता दरबारियों के श्रीमुख से कुछ भी सुनना पसंद नहीं करती। दरबारी आखिर दरबारी होते हैं। वे हमेशा  सिर झुका कर सलाम करते हैं और  अपने मालिक की हर आज्ञा को शिरोधार्य मानते  हैं। ऐसे व्यक्तियों की राजनीतिक हैसियत से जनता परिचित है। क्योकि जिनके पास सच को सच बताने  की और झूठ को झूठ कहने की हिम्मत नहीं होती है, उन्हें जनता के जवाब देने की आवश्यकता नहीं हैं।
जनता का पहला सवाल है- आपके शासन काल में आवश्यक उपयोग की वस्तुए, जिसमे विशेषकर खाद्य पदार्थ  सम्मिलित हैं, इतने महंगे क्यों हो गये? वस्तुओं के भाव अचानक डेढ़ या दुगने क्यों हो गये? आप साढ़े चार साल बाद दो रुपये गेहूं दे कर जनता को भूख से मरने नहीं देना चाहते, किन्तु अब ऐसा अध्यादेश लाने की क्या आवश्यकता आ पड़ी? यह अध्यादेश पहले क्यों नहीं लाया गया? साढ़े चार साल में जिन लोगों ने भूख से प्राण त्याग दिये, उस पाप के कौन भागीदार है? निश्चय ही आपका उद्धेश्य जनता को मूर्ख बना कर वोट बटोरना है।  भारत की निर्धन जनता के प्रति किसी तरह की सहानुभूति आपके मन में नहीं है।
अजीब विडम्बना है, आप गेहूं खैरात में दो रुपये में दिला देंगें, परन्तु हमे सब्जी तो पचास रुपये किलों खरीदनी पड़ रही है। इसी तरह दाले-अस्सीं रुपये किलो, खाद्य तेल सौ रुपये किलो,  दूध व चीनी चालिस रुपये किलो खरीदनी पड़ेगी। गेहूं खरीदने की क्षमता तो जुटा लेंगे, परन्तु दूसरी चीजे कैसे खरीदेंगे? क्या भूख मिटाने के लिए केवल गेहूं को ही सूखा चबायेंगे?
निश्चय ही भारत की अभावग्रस्त जनता को खैरात नहीं, महंगार्इ से निजा़त चाहिये। क्या आपके पास ऐसे उपाय हैं, जिससे बाज़ार में उपलब्ध वस्तुऐं सस्ती हो जाय और हम अपनी हैसियत के आधार पर उन्हें खरीद सकें। यदि आपके मन में ऐसी योजना है और आप इसे लागू करना चाहते हैं, तो सविस्तार तार्किक आधार पर समझाएं, ताकि आपकी योजना पर मनन करने के बाद ही हम आपको वोट दे सकें।
जनता का दूसरा सवाल हैै- आप एक-एक संसदीय सीट पर  अनुमानित सौ-सौ करोड़ रुपये दावं पर लगाने वाले हैें। क्या बता सकते हैं कि आपके सांसद इतना रुपया कहां से ला रहे हैं? क्या यह सही नहीं की आप पुन: सरकार बनाने के लिए एक से डेढ़ लाख करोड़ रुपया खर्च करने वाले हैं, जो कि भारत की सारी राजनीतिक पार्टियों द्वारा खर्च की जाने वाली राशि से अधिक होगी।  यदि आपकी सरकार फिर बन गयी, तो भ्रष्टाचार पर अंकुश लगना असंभव है, क्योंकि जो लोग सांसदों पर दांव लगा रहे हैं, वे अपना लगाया हुआ धन  पुन: प्राप्त करना चाहेंगे। याने चुनाव जीतना और सरकार बनाना एक व्यापार हो गया है। राजनीति में धन लगाया जाता है और धन कमाया जाता है। निश्चय ही यदि भारत की जनता आपको वोट दे कर पुन: सरकार बनाने का अवसर देगी, तो भ्रष्टाचार पर आप नियंत्रण नहीं कर पायेंगे, क्योंकि जो सरकार भ्रष्टाचार करने के लिए ही बनी हो, उससे भ्रष्टाचार दूर करने की आशा नहीं की जा सकती। फिर भी यदि आप इस देश को भ्रष्टाचार मुक्त सुशासन देना चाहते हैं और भ्रष्टाचार समाप्त करने की नीति या योजना आपके मन में हो तो स-विस्तार जनता के समक्ष इसका प्रारुप प्रस्तुत करें।
भारतीय रुपया रिकार्ड स्तर तक गिर गया है। विदेशी निवेशक दूर भाग रहे हैं, जिससे शेयर बजार गोते लगा रहा है। कारण है-चुनाव जीतने के लिए राजकोषीय धन को लूटाना, जिससे राजकोषीय धाटा बढ़ रहा है। औद्योगिक उत्पादन गिर रहा है। देश की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है। लाख कोशिश करने के बाद भी देश की अर्थ व्यवस्था पटरी पर नहीं लायी जा रही है। हालात अच्छे नहीं है। चुनावों के बाद स्थिति और अधिक भयावह होगी। देश की आर्थिक सेहत सुधारने का एक ही उपाय बचा है- ‘देश और विदेश में छुपे हुए काले धन को किसी भी तरह देश की अर्थव्यस्था में लाना।’
अत: भारतीय जनता का तीसरा सवाल  है-’यदि आपकी सरकार बन गयी, तो क्या आप काले धन के संबंध में कोर्इ नीति बनायेगे ? यदि आपका उत्तर ‘हां’ में है, तो बतायें देश भर में फैली बेमानी संपति को जब्त करने और विदेशों में जमा भारतीयों का कालाधन देश में लाने में आपको कितना समय लगेगा? यदि आप इस सवाल का संतोषप्रद जवाब दे पायेंगे, तभी आपको वोट देने के बारें में सोचा जा सकता है।
जिन व्यक्तियों को इस देश से प्रेम नहीं है। भारतीय संविधान में आस्था नहीं है। जो देश के दुश्मनों के साथ मिल कर भारतीय नागरिकों के जीवन को असुरक्षित करने के लिए घिनौने “ाडयंत्र में लगे हुए हैं, ऐसे लोगों की कुत्सित कार्यवाहियों को रोकने के लिए आप क्या कर रहे हैं? ये लोग देश में छुपे हुए हैं। अपने घृणित इरादों को अंजाम देने में लगे हुए हैं। देश भर में स्लीपर सेल बना रहे हैं। देश के शहरों में बम विस्फोट कर निर्दोष नागरिको की हत्यायों के ये दोषी है, किन्तु दुर्भाग्य से ये पकडे़ नहीं जा रहे हैं। ये कहां गये ? क्या इनको धरती निगल गयी या आकाश खा गया?  यदि आप वोट बैंक खोने के भय से इनके विरुद्ध कार्यवाही नहीं कर रहें हैं, तो बताएं -क्या भारतीय नागरिकों की सुरक्षा से ज्यादा आपको अपने वोट बैंक की चिंता है? यदि आपके मन में यही दुविधा हैं, तो क्षमा कीजिये, हमारे वोट आपकों नहीं मिल सकते।
नागरिकों की सुरक्षा  के साथ-साथ देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी केन्द्र सरकार की होती है। यदि देश में एक सुदृढ़ व जवाबदेय सरकार होती है, तब पड़ोसी देश हमारे देश से बेवजह पंगा लेने का साहस नहीं दिखा सकते। परन्तु यदि एक कमज़ोर सरकार अस्तित्व में आती है, तब पड़ोसी हमें आंखें दिखाते हैं। यही इन दिनों हो रहा है। चीन हमारी सीमाओं में घुस कर हमें धमका रहा हैं और पाकिस्तानी सेना या तो हमारे जवानों के सर काट कर ले जा रही है या धोखे से हमारे जवानों की हत्याएं कर रही है। पूरे देश में पाकिस्तान सरकार के प्रति गुस्से का उबाल आ रहा है, किन्तु दुर्भाग्य से केन्द्र की सरकार देश की जनता के साथ नहीं है। जबकि देश को एक ऐसी सरकार चाहिये, जो दुश्मन राष्ट्र की हरकतों का कठोर जवाब दे सकें। विश्व मंच पर उनकी करतूतों को प्रभावशाली ढंग से उठा सके। देश को लुंज-पुंज विदेश नीति चाहिये। एक सख्त विदेश नीति चाहिये।  हमारा पांचवा सवाल है- आप अपने वर्तमान कार्यकाल में ऐसी नीति देश को देने में असफल रहे हैं, परन्तु क्या भविष्य में भी आपकी यही नीति रहेगी या इसमें आप बदलाव करेंगे ?

No comments:

Post a Comment