Saturday 25 May 2013

अपने महान हिंदू धर्म कि महान विरासत को

हमारे ऋषि-मुनियों ने कठोर तपस्याएं कि जिनके परिणामस्वरूप उन्हें ईश्वर का दर्शन हुआ और ईश्वर द्वारा उसकी इस सृष्टि के जीवन-मरण के अदभुत चक्र का ज्ञान प्राप्त हुआ तथा अनेक सिद्धियाँ (शक्तियाँ ) प्राप्त हुई जिनका प्रयोग करके उन्होनें ब्रह्मांड आदि के भी अनेक रहस्यों को जाना |


इस सारे ज्ञान को उन्होनें अपनी अगली पीढ़ी को सौंपा ,उस अगली पीढ़ी ने अपनी अगली पीढ़ी को वो ज्ञान ट्रांसफर किया ,ध्यान रहे यह सब मौखिक और क्रिया रूप में किया जाता रहा ना कि लिखित रूप में क्योंकि उस समय के हमारे भारतवासियों कि स्मरण शक्ति इतनी अधिक थी कि उन्हें उसे लिखकर याद रखने कि आवश्यकता नहीं थी ,गुरु अपने शिष्यों को मौखित रूप में ही सब कुछ बता देते थे और साक्षात् उसे सारी क्रियाओं का दर्शन देके और करवाकर उसे उसमें पारंगत कर देते थे यानी Oral Theory + Practical ये आज से हजारों से हजारों साल पुराना समय था |


ऐसा अनेकों वर्षों तक चलता रहा ,बाद में धीरे-२ प्रकर्ति में कुछ परिवर्तन आने शुरू हुए जिनका अच्छा-बुरा असर हम भारतवासियों पर भी पढ़ा और हमारी स्मरणशक्ति में थोड़ी कमी आनी शुरू हुई | अब वह पहले जितनी तीक्ष्ण नहीं रही थी ,केवल उदहारण के तौर ( यद्यपि असल संख्या बहुत ज्यादा थी ) पर अगर पुरानी पीढ़ी ने उस ज्ञान के एक लाख श्लोक नई पीढ़ी को बताए तो नई पीढ़ी केवल उसका 98% ही हुबहू रूप ग्रहण कर पाई ,बाकी 2 % को भी उसने किया जरूर परन्तु थोड़ी सी गडबड़ी के साथ | इतने विराट और अधिक ज्ञान को वैसा का वैसा याद रखने में कठिनाई महसूस कि जाने लगी |


अचानक आ रहे इस परिवर्तन को उस समय के महर्षि कृष्ण द्वैपायन व्यास जी ने समझ लिया और उन्हें चिंता हुई कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो आने वाली पीढ़ियों के लिए यह विलक्षण ज्ञान नष्ट हो जाएगा या अगर उन तक पहुंचेगा भी तो वो गलत ,तोड़ा-मरोड़ा ,त्रुटिपूर्ण होगा जिससे कि धर्म पर अनास्था बढ़ेगी |


तो इस समस्या पर गहनतापूर्वक विचार करके उन्हें ये महसूस हुआ कि अब खाली मौखिक रूप से यह ज्ञान अगली पीढ़ी तक बिलकुल शुद्ध रूप में पहुंचाना सम्भव नहीं इसलिए उन्होनें इस ज्ञान को लिपिबद्ध यानी लिखित रूप में संजोकर अगली पीढ़ी दर पीढ़ी तक पहुंचाने का निर्णय किया |


ऐसा करने के लिए उन्होनें इस सारे ज्ञान को इकट्ठा करके उसे चार हिस्सों में बाँट दिया और उसे चार किताबों में लिख दिया | ऋग्वेद ,यजुर्वेद ,सामवेद और अथर्वेद | वेद का शाब्दिक अर्थ है ज्ञान | वेद का चार रूपों में ऐसा विभाजन करने के कारण ही महर्षि कृष्ण द्वैपायन व्यास जी वेद-व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए


प्रत्येक वेद-पुस्तक में वेद-व्यास जी ने मुख्यतः तीन खंड बनाए -


पहले खंड में श्लोक रूपी वे कवितायें डाली गई हैं जिनमें प्रकृति को उस ईश्वर का ही साक्षात् मौजूद स्वरूप मानकर उसकी उपासना कि गई है | यही कारण है कि उस समय ये ग्लोबल-वार्मिंग जैसी समस्याएं उत्पन्न नहीं होती थी क्योंकि उस समय मानव ने प्रकृति का शोषण नहीं किया क्योंकि वे प्रत्येक कण में ईश्वर का वास मानते थे जिसके कारण वे जानते थे कि हमें प्रकृति से केवल अपनी आवश्यकता तक का ही लेने का हक है परन्तु उससे अधिक लेकर उसका शोषण करके अन्य जीव-जन्तुओं तथा आने वाली पीढ़ी के जीवन को खतरे में डालने का हक हमें नहीं है | दुनिया के अनेक विद्वानों और विचारकों ने स्वयं इस बात को माना है कि इस खंड में जो कवितायें दी हुई हैं वे कविता कि दृष्टि से हर मापदंड में इतनी अधिक perfect हैं कि आज कि कविताओं कि उनके सामने कोई तुलना नहीं हो सकती |


दूसरे खंड में उन्होनें कर्म-कांड कि विधियाँ डाली हैं | इस कर्म-कांड के विषय में ये विवाद हो सकता है कि क्या इनसे वाकई कुछ लाभ होता है | उदहारण के तौर पर धन-तेरस में हमारे यहाँ कोई ना कोई बर्तन खरीद कर लाने का विधान है इस उम्मीद में कि इससे हमारे घर में धन कि वृद्धि होगी | अब असल में इस सबसे हमें कुछ फायदा होता हो या ना होता हो परन्तु क्या हमने कभी सोचा है कि इन त्योहारों में बताए गए सामान कि खरीददारी करने से उसे बनाने वाले कितने हजारों गरीब लोगों को स्वरोजगार एवं आमदानी कि सम्भावना खड़ी होती है | और बहुत सी कर्म-कांड कि विधियों के तो कई ऐसे वैज्ञानिक प्रमाण भी साबित हुए हैं जिनके अनुसार उससे हमारे आसपास के वातावरण पर काफी अच्छा असर पड़ता है और नकारत्मक उर्जा दूर होकर सकारात्मक उर्जा निर्माण होती है |

तीसरे और अंतिम खंड में उन्होनें स्वयं को जानने का ,इस सृष्टि एवं ब्रह्मांड के रहस्यों को जानने का ,इस जीवन-मरण के चक्र को जानने इत्यादि का वह विलक्षण ज्ञान डाला जिसे पाने के लिए आज हम सभी लालियत रहते हैं कि आखिर हमारे जीवन का उदेश्य क्या है ,ईश्वर ने हमें क्यों इस धरती पर भेजा आदि आदि | हिंदू धर्म के इस रहस्यमयी ज्ञान को अथवा इस तीसरे खंड को ‘’ उपनिषदों ‘’ के नाम से भी जाना जाता है और ‘’ वेदान्त ‘’ के नाम से भी | वेदान्त के नाम से इसलिए क्योंकि यह वेद का अंतिम खंड है जिसके पश्चात इस वेद-पुस्तक का अंत होता है इसलिए इसे कहा गया ‘’ वेदान्त ‘’ | और उपनिषद नाम इसलिए क्योंकि इसमें मौजूद ज्ञान को शिष्य गुरुकुल में अपने गुरु के समीप बैठकर ग्रहण करते थे | उप का मतलब पास में ,नि का मतलब नीचे और षद का मतलब बैठकर यानी के गुरु के समीप नीचे बैठकर एकाग्रता पूर्वक ग्रहण किया गया अदभुत ज्ञान जो कि संस्कृत रूप में कहलाया ‘’ उपनिषद ‘’ |

No comments:

Post a Comment