Thursday 14 March 2013

HINDU DHARM

हिन्‍दुत्‍व के प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं-हिन्दू-धर्म -----हिन्दू-कौन ?-- गोषु भक्तिर्भवेद्यस्य प्रणवे च दृढ़ा मतिः। पुनर्जन्मनि विश्वासः स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात-- गोमाता में जिसकी भक्ति हो, प्रणव जिसका पूज्य मन्त्र हो, पुनर्जन्म में जिसका विश्वास हो--वही हिन्दू है। मेरुतन्त्र ३३ प्रकरण के अनुसार ' हीनं दूषयति स हिन्दु ' अर्थात जो हीन ( हीनता या नीचता ) को दूषित समझता है (उसका त्याग करता है) वह हिन्दु है। लोकमान्य तिलक के अनुसार- असिन्धोः सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिका। पितृभूः पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात्- सिन्धु नदी के उद्गम-स्थान से लेकर सिन्धु (हिन्द महासागर) तक सम्पूर्ण भारत भूमि जिसकी पितृभू (अथवा मातृ भूमि) तथा पुण्यभू ( पवित्र भूमि) है, ( और उसका धर्म हिन्दुत्व है ) वह हिन्दु कहलाता है। हिन्दु शब्द मूलतः फा़रसी है इसका अर्थ उन भारतीयों से है जो भारतवर्ष के प्राचीन ग्रन्थों, वेदों, पुराणों में वर्णित भारतवर्ष की सीमा के मूल एवं पैदायसी प्राचीन निवासी हैं। कालिका पुराण, मेदनी कोष आदि के आधार पर वर्तमान हिन्दू ला के मूलभूत आधारों के अनुसार वेदप्रतिपादित रीति से वैदिक धर्म में विश्वास रखने वाला हिन्दू है। यद्यपि कुछ लोग कई संस्कृति के मिश्रित रूप को ही भारतीय संस्कृति मानते है, जबकि ऐसा नही है। जिस संस्कृति या धर्म की उत्पत्ती एवं विकास भारत भूमि पर नहीं हुआ है, वह धर्म या संस्कृति भारतीय ( हिन्दू ) कैसे हो सकती है।

१. ईश्वर एक नाम अनेक।

२. ब्रह्म या परम तत्त्व सर्वव्यापी है।

३. ईश्वर से डरें नहीं, प्रेम करें और प्रेरणा लें।

४. हिन्दुत्व का लक्ष्य स्वर्ग-नरक से ऊपर।

५. हिन्दुओं में कोई एक पैगम्बर नहीं है, बल्कि अनेकों पैगंबर हैं।

६. धर्म की रक्षा के लिए ईश्वर बार-बार पैदा होते हैं।

७. परोपकार पुण्य है दूसरों के कष्ट देना पाप है।
८. जीवमात्र की सेवा ही परमात्मा की सेवा है।

९. स्त्री आदरणीय है।

१०. सती का अर्थ पति के प्रति सत्यनिष्ठा है।

११. हिन्दुत्व का वास हिन्दू के मन, संस्कार और परम्पराओं में।

१२. पर्यावरण की रक्षा को उच्च प्राथमिकता।

१३. हिन्दू दृष्टि समतावादी एवं समन्वयवादी।

१४. आत्मा अजर-अमर है।

१५. सबसे बड़ा मंत्र गायत्री मंत्र।

१६. हिन्दुओं के पर्व और त्योहार खुशियों से जुड़े हैं।

१७. हिन्दुत्व का लक्ष्य पुरुषार्थ है और मध्य मार्ग को सर्वोत्तम माना गया है।

१८. हिन्दुत्व एकत्व का दर्शन है !!!

Friday 8 March 2013

शिव पूजन में फूलों का महत्व

शिवपुराण की रुद्रसंहिता के अनुशार विभिन्न फूलों का प्रयोग कर यदि साधारण से साधारण मनुष्य भी थोडे से विधि-विधान से भगवान शिव का पूजन करले तो उसे मनोवांछित फलों की प्राप्ति हो जाती हैं।

जो व्यक्ति लाल व सफेद आंकड़े (आर्क) के फूल से भगवान शिव का पूजन करता हैं, उसे भोग व मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।
जो व्यक्ति चमेली के फूल से भगवान शिव का पूजन करता हैं, उसे उत्तम वाहन सुख की प्राप्ति होती हैं।
जो व्यक्ति अलसी के फूल से भगवान शिव का पूजन करता हैं, उसे भगवान श्री हरी विष्णु का आशिर्वाद प्राप्त होता हैं।
जो व्यक्ति शमी पत्रों से भगवान शिव का पूजन करता हैं, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।
जो व्यक्ति बेला के फूल से भगवान शिव का पूजन करता हैं, उसे उत्तम पत्नी की प्राप्ति होती होती हैं यदि कोई कन्या बेला के फूल चढाती हैं तो उसे उत्तम पति कि प्राप्ति होती हैं, अर्थातः विवाह से संबंधित बाधाएं दूर होती हैं।
जो व्यक्ति जूही के फूल से भगवान शिव का पूजन करता हैं, उसके घरमें अन्नपूर्णा का वास होता हैं उसे अन्न का अभाव नहीं होता हैं।
जो व्यक्ति कनेर के फूल से भगवान शिव का पूजन करता हैं, उसे उत्तम वस्त्र इत्यादी की प्राप्ति होती हैं।
जो व्यक्ति हरसिंगार के फूल से भगवान शिव का पूजन करता हैं, उसे सुख-सम्पत्ति की प्राप्ति एवं वृद्धि होती हैं।
जो व्यक्ति धतुरे के फूल से भगवान शिव का पूजन करता हैं, उसे उत्तम संतान की प्राप्ति होती हैं।
जो व्यक्ति डंठलवाले धतूरे से भगवान शिव का पूजन करता हैं, उसे शुभ फलो की प्राप्ति होती हैं।
जो व्यक्ति हरी दुर्वा से भगवान शिव का पूजन करता हैं, उसे दीर्धायु प्राप्त होती हैं।
जो व्यक्ति तुलसीदल से भगवान शिव का पूजन करता हैं, उसे भोग एवं मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।
जो व्यक्ति कमल के फूल से भगवान शिव का पूजन करता हैं, उसे लक्ष्मी प्राप्ति होती हैं।
जो व्यक्ति बिल्वपत्र से भगवान शिव का पूजन करता हैं, उसे धन, ऎश्वर्य की प्राप्ति होती हैं।
जो व्यक्ति शतपत्र से भगवान शिव का पूजन करता हैं, उसे आर्थिक लाभ होता हैं।
जो व्यक्ति शंखपुष्प से भगवान शिव का पूजन करता हैं, उसे धन की प्राप्ति होती हैं।
जो व्यक्ति सफेद कमल के फूल से भगवान शिव का पूजन करता हैं, उसे भौतिक सुख एवं मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।

विशेष: शास्त्रोक्त मत से मनोकामना पूर्ति हेतु यदि संबंधित फूलों को एक लाख या सवा लाख की संखाया में शिवजी चढ़ाया जाए तो शीघ्र एवं उत्तम मनोनुकूल फल प्राप्त होते हैं। भगवान शिव के पूजन हेतु चम्पा एवं केवडे, केतकी के फूल निषेध मानेगएं हैं अन्य शेष सभी फूल शिव पूजन हेतु प्रयोग किये जा सकते हैं।

Tuesday 5 March 2013

tripur sundari

भारत के पूर्वोतर राज्य त्रिपुरा की सीमा असाम और मिजोरम से मिलती है. त्रिपुरा की पुरानी राजधानी उदयपुर ही थी. उल्लेखनीय है कि महाविधा नामक समुदार्य में त्रिपुरा नाम की अनेक देवियां है" जिनमें त्रिपुरा-भैरवी, त्रिपुरा और त्रिपुर सुंदरी विशेष रुप से जानी जाती है. देवी त्रिपुरसुंदरी ब्रह्मास्वरुपा है. भुवनेश्वरी को विश्वमोहिनी माना गया है. इस स्थान पर माता के अनेक नाम है. उन्हें परदेवता, महाविधा, त्रिपुरसुंदरी, ललिताम्बा के नाम से जाना जाता है. त्रिपुरसुंदरी का शक्ति-संप्रदाय में असाधारण महत्व है. इन्हीं के नाम पर सीमान्त प्रदेश त्रिपुरा राज्य नामक स्थान है. त्रिपुरा का शाब्दिक अर्थ "पानी के पास" होता है.
यहां की शक्ति "त्रिपुर सुंदरी" तथा भैरव "त्रिपुरेश" है.  इस पीठ स्थान कूर्मपीठ भी कहते है. इस मंदिर का प्रांगण (आंगन)कछुवे की तरह है. तथा इस मंदिर में लाल-काली पत्थर की बनी मां महाकाली की भी मूर्ति है. इसके अतिरिक्त आद्धाकाली भी कहा जाता है. यहां देवी सती के दक्षिण पाद (पैर) का निपात हुआ था. यहां पर आधा मां की एक छोटी मूर्ति भी है. कहते ही कि त्रिपुरा-नरेश शिकार हेतु या युद्ध पर जाते समय स्वयं के प्राणों की रक्षा के लिए इन्हें अपने साथ रखते थे.

त्रिपुरसुंदरी मंदिर कथा | Tripura Sundari Temple Katha in Hindi

इस संबन्ध में एक कथा प्रचलित है. 16वीं शताब्दी के प्रथम दशक में त्रिपुरा पर धन्यमाणिक का शासन था. एक रात उन्हें मां त्रिपुरेश्वरी स्वप्न में दिखीं तथा बोली की चिंतागांव के पहाड पर उनकी मूर्ति है, जो उन्हें वहां से आज ही लानी है. स्वप्न देखते ही राजा जाग गए तथा सैनिकों को तुरन्त रात में ही मूर्ति लाने का हुक्म सुना दिया.
सैनिक मूर्ति लेकर लौट रहे थे कि माता बाडी पहुंचते-पहुंचते सूर्योदय हो गया और माता के आदेशानुसार वहीं मंदिर बनवाकर मूर्ति स्थापित कर दी गई. वहीं कालांतर में त्रिपुरसुंदरी के नाम से जानी गई. इस विषय में एक और किवंदती प्रसिद्ध है.

त्रिपुरसुंदरी मंदिर कैसे बना | How was Tripur Sundari Temple Established

राजा धन्यमाणिक वहां विष्णु मंदिर बनवाने वाले थें. किन्तु त्रिपुरेश्वरी की मूर्ति स्थापित हो जाने के कारण राजा पेशोपेश में पड गएं. कि वहां वे किसका मंदिर बनवाएं. किन्तु उसी समय आकाशवाणी हुई क राजा उस स्थान पर, जहां विष्णु मंदिर बनवाने वाले थें. मां त्रिपुरसुंदरी का मंदिर बनवा दें और राजा ने वही किया.
मंदिर के पीछे पूर्व की ओर झीळ की तरह एक तालाब है, जिसे कल्याणसागर कहते है. इसमें बडे-बडे कछुए तथा मछलियां है, जिन्हें मारना और पकडना अपराध है. प्राकृ्तिक मृ्त्यु प्राप्त कछुओं / मछलियों को दफनाने के लिए अलग से एक स्थान वहां नियत है. जहां पर पुरारियों की समाधियां भी बनी हुई है.
मंदिर तथा कल्याण सागर की देख-रेख त्रिपुरा सरकार कि एक समिति के द्वारा होता है. मंदिर का दैनिक व्यय इस समिति के द्वारा ही वहन किया जाता है. दीपावली के अवसर पर यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है